सैकड़ों सालों से पहाड़ पर बैठी हिंगलाज मैया के दरबार में होता है पाप-पुण्य का हिसाब  -नौ दिनों तक माता के नौ दिव्य धामों से आप होंगे परीचित 

In the court of Hinglaj Maiya sitting on the mountain for hundreds of years the calculation of sins and virtues takes place -रतलाम जिले का चमत्कारी मंदिर, जहां देश ही नहीं विदेश से भी चमत्कार देखने आते हैं भक्त 

सैकड़ों सालों से पहाड़ पर बैठी हिंगलाज मैया के दरबार में होता है पाप-पुण्य का हिसाब  -नौ दिनों तक माता के नौ दिव्य धामों से आप होंगे परीचित 
Mata Hinglaj Gunawad


-रतलाम जिले का चमत्कारी मंदिर, जहां देश ही नहीं विदेश से भी चमत्कार देखने आते हैं भक्त 

धार्मिक डेस्क न्यूजएमपीजी।  चैत्र नवरात्रि पर देशभर में भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता की भक्ति में लीन हो गए हैं। देश भर में माता नवदुर्गा के ऐसे दर्जनों नहीं सैकड़ों चमत्कारी स्थल हैं, एसी मान्यताएं दशकों से यथावत हैं। जहां के करिश्में भक्तों को आज भी माता के साश्वत मौजूद होने का एहसास को बल देते हैं। 
                                                                         नवरात्रि के अवसर पर हम आपको प्रतिदिन रतलाम जिले के नौ ऐसे ही माता मंदिरों से रूबरू करवाएंगे। ये मंदिर सदियों पुराने, ऐतिहासिक, धार्मिक महत्व के साथ लाखों की आस्था के भी केंद्र हैं। यहां नवरात्रि में खासकर देशभर से लोग आते हैं। इन मंदिरों में मान्यता पूरी होती ही हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा लोग यहां चमत्कारों और आस्था के लिए आते हैं। 

पाकिस्तान में विराजित हिंगलाज की प्रतिकृति गुणावद 

रतलाम शहर से 27 किलोमीटर और नामली से 12 किलोमीटर दूर जिले का छोटा सा गांव है गुणावद। इसी गांव के बाहर पहाड़ी पर हिंगलाज माता की प्राचीन शक्ति पीठ है। मंदिर रियासत कालीन है, लेकिन पहले ओटले पर विराजित प्रतिमा का इसके भी कई सौ सालों पहले से पूजन किया जा रहा था। पास ही शिवालय भी है। मप्र में हिंगलाज माता के तीन ही मंदिर हैं जिनमें यह भी एक है। ये प्रतिमा पाकिस्तान में विराजित हिंगलाज माता की प्रतिकृति है। हिंगलाज माता का मंदिर राजस्थान के जेसलमेर में भी भारत -पाकिस्तान की बार्डर पर है। मान्यता है कि मंदिर में जो भी मानता सच्चे दिल और श्रद्धा से ली जाती है, वह पूरी होती है। मंदिर की पूजा प्राचीन काल से गोस्वामी द्वारा की जाती है। वर्तमान में कमल गिरी गोस्वामीजी द्वारा यहां पूजन किया जाता है। यहां प्राचीन समय में महंत भी विराजा करते थे। 

पाप-पुण्य का फैसला करते हैं यहां के स्तंभ

इस मंदिर में 56 खंभे बने हुए है। पंरतु इन खंबों की स्पष्ट गणना कोई भी नहीं कर पाता है। परिसर में स्थित शिवालय के गर्भगृह के ठीक बाहर दो-दो खंबों की दो श्रृंखला है। लोग पहले और फिर दूसरे खंबों के बीच से निकलते हैं। पहले खंबों में दूरी कुछ इंच, जबकि दूसरे में इससे भी कम है। मान्यता है कि पहला खंबा पुण्य का है, जिसके जीवन में पुण्य-पाप से अधिक होते हैं, वे ही दोनों के बीच से निकल पाते हैं। दूसरे खंबे पाप के हैं और इनके बीच से केवल वे ही लोग निकल सकते हैं, जिन्होंने समस्त पाप का प्रायश्चित कर लिया हो। 

पुरातत्व और प्राकृतिक महत्व भी 

यह स्थान अति प्राचीन व दर्शनीय तथा धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस स्थान की पुरात्तव विभाग ने खोज की थी। यहां की पहाड़ी पर कई प्राचीन मूर्तियां भी निकली थी। जिस पहाड़ी पर मंदिर हैं, इसके कुछ नीचे ही एक तालाब है। तालाब और मंदिरों के चारों तरफ पेड़ और खेत होने से प्राकृतिक रूप से यह स्थान बेहद खूबसूरत है।