सोयाबीन से आस, पीछे मक्का और कपास - तिलहन की बोवनी सिर्फ नाम मात्र होने की उम्मीद
रतलाम में तेजी के साथ खेती के तरीके और फसलों के चुनाव में बड़ा अंतर आ रहा है। खाद्यान्न का रकबा बढ़ा है, लेकिन तिलहन और दलहन का रकबा चिंताजनक सिकुड़ रहा है।

कृषि डेस्क। बारिश की फुहारों के साथ खाद-बीज, उर्रवरक की दुकानों तक किसानों का सफर भी शुरु हो गया है। रतलाम में तेजी के साथ खेती के तरीके और फसलों के चुनाव में बड़ा अंतर आ रहा है। खाद्यान्न का रकबा बढ़ा है, लेकिन तिलहन और दलहन का रकबा चिंताजनक सिकुड़ रहा है।
प्री-मानसून की पहली बारिश के साथ ही किसान अपनी तैयारी में लग गए हैं। रतलाम सहित मालवांचल में अमूमन प्री-मॉनसून के 2-3 बार बारिश होते ही किसान खेतों में आई नमी में बीज डाल देते हैं। यही तैयारी रविवार से शुरु हो गई है जिसके कारण खाद-बीज बाजार में भीड़ देखी जा रही है। अनुमान है कि इस बार लगभग 2 लाख 90 हजार हैक्येटर से भी ज्यादा पर सोयाबीन की बोवनी होगी, जबकि बाकि फसलें गिनती के खेतों तक सिमट कर रह जाएंगी।
पिछले कुछ सालों में सोयाबीन का रकबा तेजी से बढ़ा हैं। हालांकि अब धीरे-धीरे किसानों का इससे भी मोहभंग हो रहा है, लेकिन दूसरा टिकाऊ विकल्प नहीं होने से किसान दूसरी फसलें छोड़कर इसे उगा रहे हैं। कृषि विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि 2010-2020 के दशक में तिलहन और दलहन फसलों को बोने का सिलसिला कम होते-होते अब 10-12 हेक्टेयर में सिमट गया है। कृषि विभाग कागजों पर किसानों को प्रेरित करने के लिए योजनाएं चला रहा है, समझा रहा है, लेकिन कागजों से बाहर जमीन पर हकीकत अलग है। विभाग के ही आंकड़े बताते हैं कि रतलाम जिले में ज्वार, बाजरा, तिल की पैदावार 10-20 क्विंटल से ज्यादा नहीं। धान, अरहर (तुअर), मूंग और मूंगफली का भी लगभग यही हाल है। वहीं 2016-2021 के बीच कपास और उड़द का रकबा भी तेजी से घटा है।
किसानों के सामने ये हैं समस्या...
युवा किसान संघ के राजेश पुरोहित बताते हैं कि आसपास के लगभग सभी जिलों में दलहन का रकबा घटने की सबसे बड़ी वजह नीलगाय है। पिछले एक से डेढ़ दशक में नीलगाय की आबादी लगभग चार गुना हो गई है। नीलगायों के झुंड खेतों में घुसकर फसल खाने के अलावा दौड़कर बर्बाद कर देते हैं। लगातार शिकायत के बाद भी वन प्राणी होने पर भी न तो वन विभाग, न कृषि विभाग न ही कोई विभाग इसके प्रबंधन, रोकथाम के लिए एक भी योजना बना सका है। दूसरा बड़ा कारण फसलों में होने वाले बैक्टीरियल और फंगल इंफैक्शन हैं। किसान श्यामलाल धाकड़ बताते हैं कि दलहन फसलों के बीज और इनकी पैदावार में उपयोग होने वाले उर्वरक और रखरखाव के लिए कीटनाशक महंगे हैं। इसके बावजूद बीमा में उतनी राहत नहीं मिलती है। फसल को बीमारी लग जाए तो किसानों का बहुत नुकसान होता है। तीसरा बड़ा कारण कीमत है। क्योंकि किसानों को इतनी मेहनत के बावजूद इनकी कीमत ज्यादा नहीं मिलती है, जबकि मंडी के बाहर निकलते ही कीमत 3 से 4 गुना बढ़ जाती है।
रतलाम में फसलों के उत्पादन पर एक नजर
(2019-2021)
फसल रकबा उत्पादन उत्पादकता
(हेक्टेयर) (मैट्रिक टन) (किलो प्रति हेक्ट)
धान 145 136 937
ज्वार 20 28 1400
बाजरा 11 12 1091
मक्का 18818 31727 1686
तुवर 215 96 447
उड़द 4168 1735 416
मूंग 197 93 472
मूंगफली 207 168 812
तिल 28 13 464
सोयाबीन 287775 185327 644
कपास 21103 13865 657
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दलहन 4580 1924 420
तिलहन 288011 185508 644
खाद्यान्न 235574 33827 1435