NewsMPG – MP & India News: Ratlam, Ujjain, Indore, Bhopal, Delhi, Mumbai | Sports, Spirituality, Arts & Travel & : धर्म और ज्योतिष https://newsmpg.com/rss/category/News-and-Articles-about-Religion-and-Spirituality-आध्यात्म-की-गहराइयों-और-ज्योतिष-के-संकेतों-की-खबरें NewsMPG – MP & India News: Ratlam, Ujjain, Indore, Bhopal, Delhi, Mumbai | Sports, Spirituality, Arts & Travel & : धर्म और ज्योतिष en Copyright 2023 Newsmpg.com All Rights Reserved :: WebMaster : Harsh Shukla विद्वत बैठक का निर्णय: इस वर्ष दीपावली महालक्ष्मी पूजन सोमवार को, जानिये कौन सी तारीख को मनेगा क्या पर्व” https://newsmpg.com/diwali-2025-mahalakshmi-poojan-20-october-ratlam https://newsmpg.com/diwali-2025-mahalakshmi-poojan-20-october-ratlam Dharma Desk@newsmpg ।  दीपावली पर्व की तिथि को लेकर इस वर्ष भी असमंजस की स्थिति निर्मित हो रही थी। कुछ पंचांगों में 20 अक्टूबर तो कुछ में 21 अक्टूबर को महालक्ष्मी पूजन व दीपावली मनाने का उल्लेख था।

इस विषय पर एक वृहद विद्वत बैठक महांकाल मंदिर के सामने मानसधाम, शक्ति नगर में आयोजित की गई, जिसमें जिलेभर के आचार्यगण, पंचांग निर्माणकर्ता, पुजारी संघ, सनातन धर्म सभा, सर्वब्राह्मण महासभा और मंदिरों में सेवारत ब्राह्मणबंधु उपस्थित हुए। ज्योतिषाचार्य शिवशंकर दवे ने बताया कि बैठक का उद्देश्य समाजजन के असमंजस से मुक्त रहकर शास्त्रसम्मत व सर्वमान्य तिथि पर एकरूपता के साथ दीपोत्सव मना सकें यह था।

बैठक में निर्णय हुआ कि 20 अक्टूबर सोमवार : अपराह्न 3:45 बजे चतुर्दशी समाप्त होकर अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी। अमावस्या तिथि 21 अक्टूबर, मंगलवार को सायं 5:54 बजे तक रहेगी। इस दिन सूर्यास्त और तिथि समाप्ति एकसाथ (5:54 बजे) होने से सूर्यास्त के बाद अमावस्या का अंश मात्र भी शेष नहीं रहेगा।

यह कहते हैं शास्त्र

शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल और रात्रि व्यापिनी अमावस्या ही ग्राह्य मानी जाती है। अत: विद्वानों के मतानुसार मुख्य पूजन काल 20 अक्टूबर (सोमवार) को ही रहेगा। डॉ. विष्णुकुमार शास्त्री (निमार्ता, श्री सिद्धविजय पंचांग) ने स्पष्ट किया कि 21 अक्टूबर को सूर्यास्त के बाद अमावस्या शेष नहीं रहती। अत: वह तिथि दीपावली हेतु ग्राह्य नहीं है। आचार्य मनोज भट्ट ने कहा कि प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या ही शास्त्रसम्मत है। काशी विद्वत परिषद, वाराणसी की 4 अक्टूबर को सम्पन्न बैठक में भी 20 अक्टूबर को ही दीपावली पर्व मनाने का निर्णय लिया गया।

इन तारीख को मनेंगे ये पर्व

18 अक्टूबर धनतेरस, 19 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी, 20 अक्टूबर महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली, 22 अक्टूबर गोवर्धन पूजन, 23 अक्टूबर भाई दूज मनाया जाएगा। इस दौरान बैठक में वैदिक जागृति पीठ के महर्षि संजयशिवशंकर दवे, पं. चेतन शर्मा, पं. जितेंद्र नागर, पं. जीवन पाठक, अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के जिला अध्यक्ष पं. मुकेश शर्मा, पं. जितेंद्र व्यास, पं. नरेश शर्मा, पं. ज्ञानेंद्र भारद्वाज, पं. आशीष मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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Wed, 08 Oct 2025 18:51:50 +0530 newsmpg
बच्चों को सर्दी&जुकाम से राहत दिलाने के घरेलू नुस्खे https://newsmpg.com/बच्चों-को-सर्दीजुकाम-से-राहत-दिलाने-के-घरेलू-नुस्खे https://newsmpg.com/बच्चों-को-सर्दीजुकाम-से-राहत-दिलाने-के-घरेलू-नुस्खे Wed, 01 Oct 2025 17:35:18 +0530 newsmpg गायत्री मंत्र का महत्व, जाप, और महिलाओं के लिए इसका महत्व https://newsmpg.com/गायत्री-मंत्र-का-महत्व-जाप-और-महिलाओं-के-लिए-इसका-महत्व https://newsmpg.com/गायत्री-मंत्र-का-महत्व-जाप-और-महिलाओं-के-लिए-इसका-महत्व Wed, 01 Oct 2025 17:35:18 +0530 newsmpg अधपुष्पी का औषधीय गुण https://newsmpg.com/अधपुष्पी-का-औषधीय-गुण https://newsmpg.com/अधपुष्पी-का-औषधीय-गुण Fri, 19 Sep 2025 17:12:58 +0530 newsmpg घर के सामने है अशोक का वृक्ष? जानिए इससे जुड़ी ये 4 ज़रूरी बातें https://newsmpg.com/घर-के-सामने-है-अशोक-का-वृक्ष-जानिए-इससे-जुड़ी-ये-4-ज़रूरी-बातें https://newsmpg.com/घर-के-सामने-है-अशोक-का-वृक्ष-जानिए-इससे-जुड़ी-ये-4-ज़रूरी-बातें Fri, 19 Sep 2025 17:12:58 +0530 newsmpg 100 साल बाद बना दुर्लभ संयोग: चंद्र ग्रहण से शुरू और सूर्य ग्रहण पर समाप्त होगा पितृ पक्ष ! भूलकर भी न करें ये गलती। उपाय देंगे पितरों का आशीर्वाद! https://newsmpg.com/100-saal-baad-pitr-paksh-chandra-grahan-se-shuru-surya-grahan-par-samapt https://newsmpg.com/100-saal-baad-pitr-paksh-chandra-grahan-se-shuru-surya-grahan-par-samapt ज्योतिष डेस्क@newsmpg । हिंदू पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, साल 2025 का पितृ पक्ष एक अद्भुत और दुर्लभ खगोलीय संयोग लेकर आ रहा है।
लगभग 100 साल बाद ऐसा अवसर बन रहा है जब पितृ पक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण (7 सितंबर 2025) से होगी और समापन सूर्य ग्रहण (21 सितंबर 2025) पर। यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि खगोलीय और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण समय है।

???? क्यों है यह संयोग रहस्यमयी और खास?

पितृ पक्ष हमेशा पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण का समय होता है।
लेकिन इस बार यह और भी विशेष है क्योंकि एक ही पखवाड़े में दो ग्रहण पड़ेंगे।

7 सितंबर 2025 को पितृ पक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से होगी।
21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण लगेगा।

एक ही पितृ पक्ष में चंद्र और सूर्य ग्रहण का आना अत्यंत दुर्लभ खगोलीय घटना है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह संयोग पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष और शांति दिलाने में विशेष भूमिका निभाएगा।

⚰️ श्राद्ध और तर्पण का महत्व

हिंदू धर्म में माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
इस बार के दुर्लभ ग्रहण संयोग में किया गया श्राद्ध और तर्पण अत्यंत फलदायी और शक्तिशाली होगा।
हालांकि, ग्रहण और सूतक काल के दौरान पितृ कर्म नहीं किए जा सकते।
परंतु ग्रहण समाप्त होने के बाद किए गए दान, स्नान, मंत्र-जप और तर्पण का फल कई गुना बढ़ जाता है।

????️ ग्रहण काल में सावधानियां

ग्रहण के दौरान शास्त्रों में कुछ कार्य वर्जित माने गए हैं।

  • पूजा-पाठ और श्राद्ध नहीं करें।

  • मंदिरों में प्रवेश और मूर्ति स्पर्श से बचें।

  • भोजन पकाने और खाने से परहेज़ करें।

  • गर्भवती महिलाओं को ग्रहण का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं करना चाहिए।

  • बहस, झगड़े और नकारात्मक कार्यों से बचना चाहिए।

? ग्रहण के बाद क्या करें?

ग्रहण समाप्त होने के बाद कुछ विशेष धार्मिक कार्य करने चाहिए:

  • सबसे पहले स्नान करें, संभव हो तो गंगाजल स्नान करें।

  • भगवान विष्णु जी की पूजा करें।

  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

  • पितरों के लिए दान-पुण्य करें और ब्राह्मण भोजन कराएं।

? क्या है अशुभ?

  • ग्रहण और सूतक काल में किए गए किसी भी शुभ कार्य का फल नहीं मिलता।

  • इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पूजा वर्जित है।

  • वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है।

? क्या है शुभ?

  • ग्रहण समाप्ति के बाद किया गया दान और श्राद्ध अत्यंत फलदायी माना गया है।

  • पितरों की आत्मा को मुक्ति और शांति का वरदान मिलता है।

  • इस दुर्लभ संयोग में किए गए पितृ कर्म सौगुना फलदायी माने गए हैं।

♈ राशियों पर ज्योतिषीय असर

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहण का असर सभी राशियों पर अलग-अलग होगा।
कुछ राशियों को विशेष लाभ और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
वहीं कुछ राशियों को इस समय सावधानी बरतनी होगी।
कुल मिलाकर, यह समय आत्मिक शुद्धि और कर्म सुधार का अवसर माना गया है।

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Sat, 06 Sep 2025 16:45:04 +0530 newsmpg
“60 साल से अन्न त्याग कर भी हर भक्त को खिलाते रहे भोजन, उन्हीं संत के भंडारे में उमड़ी अपार भीड़ – टूटे रिकॉर्ड, फोरलेन पर लगा लंबा जाम” https://newsmpg.com/sant-mangaldas-bhandara-bheed-jam https://newsmpg.com/sant-mangaldas-bhandara-bheed-jam रतलाम/जावरा/नामली@newsmpg।  गुरु भक्ति का अनुपम और ऐतिहासिक नजारा सप्तमी तिथि को उस समय देखने को मिला जब रूपनगर फंटा  स्थित हनुमान मंदिर के संत मंगलदास जी महाराज के साकेतवास उपरांत भव्य भंडारे का आयोजन हुआ।
संत मंगलदास जी महाराज को नमन करने और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के लिए अयोध्या, काशी, उत्तराखंड, कसौली, उज्जैन, प्रतापगढ़, उदयपुर, वृंदावन आदि से बड़ी संख्या में संतजन रतलाम के अरनियापीठा पहुंचे।

पहले यह आयोजन रूपनगर फंटा स्थित आश्रम परिसर के समीप तय था, किंतु भारी भीड़ की संभावना को देखते हुए इसे अरनियापीठा मंडी परिसर में स्थानांतरित किया गया। तैयारियों का जायजा लेने के लिए जावरा विधायक डॉ. राजेंद्र पांडेय और परिवार व्यवस्थाओं को लेकर बैठक और स्थल निरीक्षण कर यह सुनिश्चित करता रहा कि भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

“संबंधित खबर  :  रूप नगर फंटा हनुमान मंदिर के संत 1008 श्री मंगल दास जी महाराज ब्रह्मलीन....https://newsmpg.com/Sant-1008-Shri-mangaldas-Ji-Maharaj-took-his-last-breath-on-Thursday-thousands-of-devotees-arriving-to-pay-the-last-visit

आर्शीवचन, कन्यापूजन संग हुआ प्रारंभ 

शनिवार को हुए इस आयोजन का आरंभ संतों के आशीर्वचन से हुआ। 1008 संत श्री मंगलदास जी महाराज के जीवन से मिली गुरु प्रेरणा को सदैव आत्मसात करने का आह्वान किया। इसके उपरांत कन्या पूजन एवं कन्या भोज सम्पन्न हुआ। फिर संत भोज आयोजित हुआ और उसके पश्चात भक्तों ने प्रसादी ग्रहण की। सुबह लगभग 10 बजे आरंभ हुआ भंडारा देर शाम तक चलता रहा। मंडी परिसर में सफाई, पेयजल, शौचालय, टेंट में डेढ़ हजार लोगों ने सेवा दी। जबकि 200 से ज्यादा हलवाई और महाराजों के साथ भी करीब 1 हजार भक्त भोजन बनाने में लगे। 

फोरलेन पर लगी कतारें, पैदल भी पंहुचे भक्त

-सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक मंडी तक आने वाले सभी रोड और फोरलेन पर भीड़ लगती ही रही। 
-दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक उज्जैन-बड़ावदा फोरलेन, जावरा-मंदसौर-नीमच, जावरा- रतलाम फोरलेन सभी पर 5-5 किलोमीटर तक वाहनों की कतारें लगती रहीं। 
-लोग वाहन छोड़कर कई किलोमीटर तक पैदल चलकर भंडारे में शामिल होने के लिए चलते दिखे। 

“यह भी पढ़ें : “कब्र से अचानक गायब हुआ शव, रहस्यमय मामले ने चौंकाया” https://newsmpg.com/ratlam-bajana-grave-dead-body-missing-sensation

पुलिस अधिकारी, जवान डटे 

ट्रैफिक को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के साथ पुलिस जवान और अधिकारी पूरे समय तैनात रहे। एसपी अमित कुमार के निर्देश पर एएसपी राकेश खाखा, सीएसपी युवराज सिंह चौहान, नामली, रिंगनोद, कालूखेड़ा, रतलाम आईए, जावरा सिटी, जावरा आईए से आए पुलिस बल के साथ ही एसएफ, मंदसौर, उज्जैन से आए पुलिस बल और बम रोधी दस्ता पूरे समय मुस्तैदी से तैनात रहा। इसके साथ ही स्थानीय  जनप्रतिनिधियों, नगर परिषद की टीम और अन्य एजेंसियों ने भी सहयोग दिया। 

संत मंगलदास जी साकेतवास:  60 वर्ष से नहीं खाया अन्न, हर श्रद्धालु को करवाते थे भोजन

उल्लेखनीय है कि महाराज जी का आश्रम महू-नीमच स्टेट हाईवे पर जावरा से 10 किमी दूर रूपनगर फंटे पर स्थित है। वे मूल रूप से खाचरोद तहसील के निवासी थे पंरतु वर्षो से रतलाम, मंदसौर, नीमच, उज्जैन आदि में निरंतर भ्रमण कर धर्म जागरण करते रहे। महाराज जी ने पिछले 60 वर्षों से भोजन नहीं किया था, लेकिन उनके आश्रम से कोई भी श्रद्धालु भूखा नहीं जाता था। आश्रम पर 24 घंटे भोजन की भट्टी जलती रहती थी और आने वाले सभी भक्तों को भोजन कराकर ही विदा किया जाता था। 

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Sat, 30 Aug 2025 17:06:27 +0530 newsmpg
रूप नगर फंटा हनुमान मंदिर के संत 1008 श्री मंगल दास जी महाराज हुए ब्रह्मलीन, अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ रहा भक्तों का सैलाब, यहां बनेगी समाधि, देखे वीडियो भक्त कैसे हुए भावविभोर https://newsmpg.com/Sant-1008-Shri-mangaldas-Ji-Maharaj-took-his-last-breath-on-Thursday-thousands-of-devotees-arriving-to-pay-the-last-visit https://newsmpg.com/Sant-1008-Shri-mangaldas-Ji-Maharaj-took-his-last-breath-on-Thursday-thousands-of-devotees-arriving-to-pay-the-last-visit हरीश चौहान naamli@newmpg।  मालवा की धरती और अनगिनत श्रद्धालुओं के हृदयों को आज गहरा आघात पहुँचा है। रूपनगर फंटा स्थित श्री हनुमान मंदिर के पूज्य संत श्री 1008 मंगलदास जी महाराज आज सुबह प्रभु नाम जपते और यज्ञ करते हुए ही ब्रह्मलीन हो गए। यह क्षण जितना अलौकिक था उतना ही भावुक— क्योंकि अपने जीवन के अंतिम समय में भी वे अपने नियत यज्ञ, धर्म प्रचार और हनुमान भक्ति में रमे रहे।

जैसे ही यह समाचार नगर और आसपास के क्षेत्रों में पहुँचा, शोक की गहरी लहर दौड़ गई। हर वर्ग, हर समुदाय, हर धर्म के लोग श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़े। हजारों गुरु भक्त, श्रद्धालु और धर्म प्रेमी गुरुजी के अंतिम दर्शन हेतु नामली, खाचरौद, जावरा, मंदसौर, उज्जैन, रतलाम सहित दूर-दराज़ से पहुँच रहे हैं।

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 बाल पन धर्म की कीर्ति फैलाने वाले संत

मूलतः उज्जैन जिले के खाचरौद तहसील के ग्राम बोरदिया के निवासी संत श्री 1008 मंगलदास जी महाराज का जीवन पूर्णतः प्रभु भक्ति को समर्पित रहा। बचपन से ही एकांत में बैठकर ‘जय श्रीराम’ और ‘हनुमान चालीसा’ का जाप उनका प्रिय साधन रहा। छोटी उम्र से वे भगवान श्री हनुमान और प्रभु श्री राम की भक्ति में लीन हो गए थे। मात्र 12-13 वर्ष की आयु में घर छोड़कर वे अयोध्या गए, जहाँ उन्होंने गुरु रामधुनी महाराज को अपना आदर्श मानकर सेवा का व्रत लिया।

सारा जीवन रहे प्रकृति के सानिध्य में

संत श्री ने मालवा की भूमि को ही अपना कर्म और भक्ति का स्थल चुना था। सबसे खास बात है कि उन्होंने जीवन पर्यंत प्रकृति का सानिध्य किया वे पक्के स्थल में ना तो रहे ना ही कभी यज्ञ किया। जंगल और खुले स्थानों में ही वे भक्ति और प्रकृति के संरक्षण का संदेश देते रहे। जबकि उन्हें रियासत से जुड़े लोगों और मंदिर समितियां की तरफ से सुविधा भी कई बार दी गई जिसे उन्होंने कभी नहीं अपनाया। वर्षों तक मालवा और विभिन्न राज्यों में एक हज़ार से अधिक महायज्ञ एवं भंडारों का आयोजन करते रहे। उन्होंने लाखों लोगों तक धर्म और भक्ति का संदेश पहुँचाया। गुरु पूर्णिमा पर उनकी कुटिया पर भक्तों का सैलाब उमड़ता था और उनके आशीर्वाद के बिना कोई भी मांगलिक कार्य अपूर्ण माना जाता था

अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ा सैलाब

गुरुवार को गुरुदेव की पावन देह को अंतिम दर्शन के लिए रूपनगर फंटा से नामली लाया जाएगा। इसके पहले रूपनगर से प्रारंभ हुए डोल (जुलूस) के दर्शनों के लिए जावरा खाचरोद मार्ग पर बड़ी संख्या में भक्त उमड़ने लगे।

नामली स्वत हुआ बंद

आगमन पूर्व ही गुरुवार के अंतिम दर्शनों के लिए नामली नगर में जगह-जगह मंच और फूलों की वर्षा के साथ श्रद्धालु स्वागत की तैयारी करने लगे। दोपहर 1 बजे नामली से अंतिम यात्रा प्रारंभ होगी, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे। इसके लिए सुबह से ही प्रतिष्ठान और काम लोगो ने स्वतः बंद कर दिए। यहां तक की स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के बावजूद निजी स्कूल निजी बड़े प्रतिष्ठान आदि भी बंद कर दिए गए। गुरु भक्तों ने कहां की आयोजन की तैयारी वे रात में करेंगे लेकिन गुरु के अंतिम दर्शन का अवसर कोई नहीं छोड़ना चाहता। 

अंतिम संस्कार और समाधि स्थल का निर्णय संत समाज और शिष्यगण मिलकर करेंगे।

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Thu, 14 Aug 2025 11:10:56 +0530 newsmpg
नाग पंचमी 2025: बुध का पुष्य नक्षत्र में गोचर और शनि का शश राजयोग, जानिए आपकी राशि पर क्या असर पड़ेगा https://newsmpg.com/nag-panchami-2025-budh-gochar-rashi-par-prabhav-astrology-update https://newsmpg.com/nag-panchami-2025-budh-gochar-rashi-par-prabhav-astrology-update रतलाम | विशेष ज्योतिष रिपोर्ट | 29 जुलाई 2025

इस बार नाग पंचमी का पर्व महज एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ग्रहों के दुर्लभ संयोगों के कारण एक ज्योतिषीय महाकुंभ बन गया है।
29 जुलाई 2025, मंगलवार को शाम 4:17 बजे, बुध देव पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। यह संयोग उस वक्त और खास बन जाएगा जब चंद्रमा कन्या राशि में राहु के साथ समसप्तक योग, शुक्र-बुध से लक्ष्मी नारायण योग और शनि से शशराज योग का निर्माण होगा।

12 राशियों पर असर 

 नाग पंचमी पर ग्रहों के इस अद्भुत गोचर का असर सभी 12 राशियों पर दिखाई देगा। कुछ राशियों को धन, पद और प्रतिष्ठा का लाभ मिलेगा तो कुछ को संयम और सजगता बरतने की सलाह दी गई है।

विशेष प्रभाव वाली राशियाँ:

मिथुन राशि:

बुध के गोचर से वाणी और धन से जुड़ा दूसरा भाव सक्रिय होगा।
✅ व्यापार में कर्ज से मुक्ति
✅ कोर्ट-कचहरी में जीत के योग
✅ नया प्रोजेक्ट हाथ लग सकता है
 उपाय: गणेश मंदिर में हरी मूंग का दान करें।

 सिंह राशि:

बुध मार्गी होने से विदेश यात्रा और प्रमोशन के प्रबल योग
✅ नौकरी में तरक्की
✅ विदेश से लाभ
✅ कर्ज से मुक्ति
उपाय: भगवान गणेश की पूजा करें।

कन्या राशि:

बुध गोचर से 11वां लाभ भाव होगा सक्रिय।
✅ लक्ष्यों की प्राप्ति
✅ कार्यक्षेत्र में सहयोग
✅ बौद्धिक क्षमता में वृद्धि
उपाय: 'ॐ बुधाय नमः' का 108 बार जाप करें, हरे वस्त्र दान करें।

तुला राशि:

10वें भाव पर प्रभाव, करियर और समाजिक पहचान में वृद्धि।
✅ प्रमोशन या नई जिम्मेदारी
✅ व्यापार में नई साझेदारी
उपाय: गणेश मंदिर में लड्डू चढ़ाएं, हरी सब्जी का दान करें।

धनु राशि:

भाग्य, शिक्षा और अध्यात्म से जुड़ा 9वां भाव होगा प्रभावी।
✅ स्टूडेंट्स को प्रतियोगिताओं में सफलता
✅ हायर एजुकेशन में नए अवसर
✅ आध्यात्मिक विकास
उपाय: विष्णु मंदिर में तुलसी पत्र चढ़ाएं, हरे फल दान करें।

सावधानी वाली राशियाँ:

कुछ राशियों जैसे कर्क, मीन और वृश्चिक के जातकों को मानसिक तनाव, संचार में गलतफहमियाँ और स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में सावधानी बरतने की जरूरत है। कुंडली में बुध कमजोर होने पर वाणी में कटुता और निर्णयों में भ्रम हो सकता है।

कालसर्प दोष निवारण के लिए विशेष संयोग:

नाग पंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है।

इस दिन करें ये उपाय:

  • नाग देवता और भगवान शिव की पूजा करें

  • शिवलिंग का कच्चे दूध से अभिषेक करें

  • "ॐ नमः शिवाय" और नाग मंत्रों का जप करें

  • गरीबों को भोजन व वस्त्र दान करे

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Mon, 28 Jul 2025 17:13:43 +0530 newsmpg
10 साल के नन्हे बालक ने किया महाकाल के दुर्लभ रुद्राक्षों का ऐसा संग्रह कि बन गए तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड https://newsmpg.com/10-year-old-kid-in-Ratlam-made-3-world-records-by-collecting-auspicious-and-rare-Rudraksh https://newsmpg.com/10-year-old-kid-in-Ratlam-made-3-world-records-by-collecting-auspicious-and-rare-Rudraksh रतलाम।  रतलाम के 10 वर्षीय बालक जिष्णु दवे ने कम उम्र में वह कर दिखाया है जो बड़े-बड़े भी नहीं कर पाते। आध्यात्मिक रुचि और रुद्राक्षों के प्रति विशेष आकर्षण के चलते जिष्णु ने एक साथ तीन विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर रतलाम और देश का नाम रोशन किया है।

जिष्णु दवे बचपन से ही रुद्राक्षों के प्रति गहरी जिज्ञासा रखते हैं। मात्र 5 वर्ष की आयु से ही जब भी रुद्राक्षों का वितरण या संग्रह होता, वह स्वयं उनमें से विशेष चिन्ह जैसे ॐ, त्रिशूल, स्वस्तिक, सुदर्शन , आदि वाले रुद्राक्ष पहचानने में रुचि लेते थे। अब तक जो भी दुर्लभ रुद्राक्ष संग्रह में आए हैं, वे अधिकतर जिष्णु की खोज का परिणाम हैं।

इन विशेषताओं के आधार पर जिष्णु के नाम तीन विश्व रिकॉर्ड दर्ज हुए हैं:

दुनिया का सबसे बड़ा रुद्राक्ष – 6.6 सेमी आकार और 120 ग्राम वज़न का यह रुद्राक्ष वाराणसी से मंगवाया गया था। इसे पहले कोई रिकॉर्ड में नहीं जोड़ा गया था।

ॐ चिह्न वाले 25 रुद्राक्षों का संग्रह – यह अपने आप में एक दुर्लभ आध्यात्मिक संग्रह है।

दुर्लभ रुद्राक्षों का संकलन – जिसमें बिना रेखाओं वाला रुद्राक्ष, त्रिशूल, स्वास्तिक, नागेश्वर लिंगम और सुदर्शन चिह्न वाले रुद्राक्ष शामिल हैं।

इन्होंने किया कीर्तिमान दर्ज

इन तीनों रिकॉर्ड को USA Book of World Records, London Book of World Records और World Records of UN , Asian Book of World Records द्वारा आधिकारिक रूप से प्रमाणित किया गया है।

संतों के सान्निध्य में हुआ सम्मान 

विनोबा नगर निवासी जिष्णु दवे रतलाम के गुरु रामदास पब्लिक स्कूल में कक्षा 5 का छात्र है तथा ज्योतिषाचार्य महर्षि संजयशिवशंकर दवे का सुपुत्र है।

इस अद्भुत उपलब्धि पर रतलाम क़े अखण्ड ज्ञान आश्रम में एक विशेष सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें वेब वर्ल्ड रिकॉर्ड के जूरी मेंबर शैलेन्द्र सिंह सिसौदिया, कमलेश जोशी ने संतों के सानिध्य में बालक को सम्मान पत्र भेंट किया। इस अवसर पर श्रृंगेरी मठ के दंडीस्वामी आत्मानंद जी सरस्वती, अखंड ज्ञान आश्रम के महामंडलेश्वर देवस्वरूपानंद जी महाराज, स्वामी सुज़ानानंद जी महाराज, स्वामी प्रभुतानंद जी महाराज , स्वामी सास्वता नंद जी महाराज , स्वामी सुदामा जी मिश्रा , निगम अध्यक्ष श्रीमती मनीषा जी शर्मा सहित संतों एवं गणमान्य नागरिकों , मनोज जी शर्मा , श्रीश्रीमाली ब्राह्मण समाज क़े अध्यक्ष नयन जी व्यास , सचिव कुलदीप त्रिवेदी ,राजेन्द्र जी पुरोहित , राजेश पाण्डेय ,पतंजलि से विशाल कुमार वर्मा ,पं.संजय मिश्रा सोमेश शर्मा , सौरभ शर्मा ने उपस्तिथ होकर जिष्णु दवे को आशीर्वाद एवं शुभकामनाएं दीं।

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Sun, 20 Jul 2025 17:38:55 +0530 newsmpg
"सावन की शुरुआत में खुला एक ज्योतिषीय संकेत—क्या शिव देंगे आपकी पुकार का उत्तर?" https://newsmpg.com/This-auspicious-month-of-Sawan-will-be-beneficial-for-so-many-reasons-as-planetary-motions-are-suggesting https://newsmpg.com/This-auspicious-month-of-Sawan-will-be-beneficial-for-so-many-reasons-as-planetary-motions-are-suggesting Religion Desk@Newsmpg. बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच जब वातावरण में “हर हर महादेव” की गूंज सुनाई देती है, जब हर शिव मंदिर गंगाजल और बेलपत्र की खुशबू से महक उठता है—तब समझ लीजिए कि सावन का पावन महीना आ गया है

सावन केवल एक धार्मिक मास नहीं है, ये मन की शांति, आत्मशुद्धि और शिव से सीधे संवाद का महीना है। यह वह समय होता है जब प्रकृति, पूजा और प्रार्थना एक साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं।

इस साल सावन खास है क्योंकि इसकी शुरुआत ही सोमवार से हो रही है—जो स्वयं शिव जी का प्रिय दिन है। साथ ही, ग्रहों की चाल भी इस बार कुछ अनोखा संकेत दे रही है, जिससे ये सावन न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय रूप से भी विशेष बन गया है।

ग्रहों का विशेष योग: क्या कह रही है आकाश की चाल?

14 जुलाई 2025, सोमवार से सावन मास प्रारंभ हो रहा है और 10 अगस्त, रविवार को समाप्त होगा। इस बार सावन में चार सोमवार का संयोग बन रहा है—जो भक्तों के लिए फलदायक है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस सावन में बन रहे ग्रहों के विशेष संयोग भक्तों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण होंगे:

शनि-मंगल का प्रभाव

  • शनि कुंभ राशि में होंगे, जो तप, न्याय और कर्म की ऊर्जा बढ़ाएंगे।

  • मंगल मिथुन में रहेंगे, जिससे विचारों और वाणी में तेज़ी आ सकती है। संयम और सतर्कता इस समय अत्यंत आवश्यक है।

 बुधादित्य योग

  • सूर्य और बुध का संयोग एक शुभ बुधादित्य योग बनाएगा, जो ज्ञान, वाणी, और निर्णय क्षमता को बल देगा।

बृहस्पति (गुरु) की कृपा

  • बृहस्पति वृषभ राशि में रहेंगे, जिससे यह महीना धार्मिक साधना, व्रत और मंत्र-जप के लिए अत्यंत अनुकूल रहेगा।

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पूजन विधि: घर बैठे ऐसे करें भोलेनाथ की पूजा

इस सावन में यदि आप पूरे नियम से शिव पूजन करना चाहते हैं, तो यह बहुत सरल है:

  1. प्रतिदिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. शिवलिंग को दूध, गंगाजल और जल से स्नान कराएं।

  3. बेलपत्र, धतूरा, शमी पत्र और सफेद पुष्प अर्पित करें।

  4. ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।

  5. सोमवार को व्रत रखें, फलाहार करें, और रात्रि को शिव कथा सुनें या पढ़ें।

  6. गरीबों को अन्न, वस्त्र या जल का दान करें—यह विशेष पुण्यकारी होता है।

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Tue, 08 Jul 2025 16:46:02 +0530 Admin 1
मां गोठड़ा की भविष्यवाणी: राजा यही रहेगा पर खींचतान रहेगी , फसलों के भाव अच्छे रहेंगे,जानिए और क्या भविष्यवाणी की प्रसिद्ध गोठड़ा माताजी ने ,सुने पंडाजी की आवाज में जस की तस भविष्यवाणी https://newsmpg.com/The-prediction-was-made-on-Navami-at-the-famous-Gothra-Mataji-temple-situated-on-the-border-of-the-district.-Like-every-year,-thousands-of-devotees-reached-the-temple-premises-to-have-darshan-of-Maa-Mahishasur-Mardani-and-listen-to-the-prediction https://newsmpg.com/The-prediction-was-made-on-Navami-at-the-famous-Gothra-Mataji-temple-situated-on-the-border-of-the-district.-Like-every-year,-thousands-of-devotees-reached-the-temple-premises-to-have-darshan-of-Maa-Mahishasur-Mardani-and-listen-to-the-prediction
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रतलाम। @newsmpg.com

जिले की सीमा से लगे हुए प्रसिद्ध गोठड़ा माताजी मंदिर में नवमी पर भविष्यवाणी की गई। हर साल की तरह मां महिषासुर मर्दनी के दर्शनों और भविष्य वाणी को सुनने के लिए मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में भक्त पंहुचे।
यहां के पंडित (पंडाजी) रामंचंद्रजी ने इस वर्ष भी नवमी पर हर साल की तरह भविष्यवाणी में साल में होने वाली कई बातों का पूर्वानुमान बताया। उन्होंने कहा कि आने वाले साल में राजा नही बदलेगा लेकिन अपसी खीचंतान बहुत रहेगी। राजनीति में उठापठक होगी , दंगे फसाद भी होगें। दुर्घटनाएं बहुत होगी , इसलिए संभल कर रहे। 

सभी फसलो के भाव अच्छे रहेगें।

इस वर्ष गर्मी बहुत पडेगी जिससे कई जगह आग लगेगी।गर्मी से वाहनो में भी आग लगेगी। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि  बैसााख में हवा के साथ बारिश होगी। असाढ़ में आंधी तूफान से जन-धन का खूब नुकसान होगा। आने वाले साल में गर्मी भी बहुत पड़ेगी और लोग परेशान हो जाएंगी। ओले खूब गिरेंगे और मावठे की बारिश भी  होगी। बारिश भी जल्द ही आ जाएगी, लेकिन शुरूआती बारिश में बोवाई न करें। खंड वर्षा होगी , दो बोवनी होगी। अच्छी बारिश होगी फिर भी कई जगह सुखा भी रहेगा। अन्य जगह अच्छी बारिश होगी। लहसून और प्याज के भाव अच्छे रहेगें। सोयाबीन में इल्ली का प्रकोप रहेगा। सोना चांदी का भाव मिडियम रहेगी। मटर, टमाटर, चना , मिर्च सहित सभी फसलो के भाव अच्छे रहेगें।  बीमारियां फैलेंगी ,इसलिए यज्ञ आदि कार्य करना। कुल देवताओ की पूजा करना। 
 अच्छी बात यह भी रहेगी कि सभी प्रकार की फसलें आने वाले साल में अच्छी होंगी। फसलों का उत्पादन भी अच्छा होगा, परंतु धैर्य रखना पड़ेगा।

सदियों से होती है भविष्यवाणी सुनने आते हैं बड़े-बड़े लोग
उल्लेखनीय है कि माता के इस धाम से दशकों नहीं बल्कि सदियों से पंडित द्वारा भविष्यवाणी की जाती है। इसे सुनने और मानने वालों की संख्या भी हजारों लाखों में है। पूरे प्रदेश और मालवा सहित जिलेभर के भक्त यहां पंहुचते हैं। पंहुचने वालों में सांसद, विधायकों के लेकर उद्योगपति, अधिकारी तक शामिल होते हैं। 

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Mon, 07 Apr 2025 15:10:34 +0530 newsmpg
रवि योग और दुर्लभ ग्रह संयोजन के साथ आज मनेगी आंवला नवमी &जानिए कौन से उपाय दिलवा सकते हैं लाभ https://newsmpg.com/Amla-navmi-will-be-celebrated-today-with-auspicious-yog-people-will-do-the-poojan https://newsmpg.com/Amla-navmi-will-be-celebrated-today-with-auspicious-yog-people-will-do-the-poojan सनातन धर्म में कार्तिक मास की बड़ी महत्व है और इसमें भी शुक्ल पक्ष की नवमी का महत्व अत्यधिक है। इस बार तो अक्षय नवमी के दिन और भी शुभ संयोग बन रहा है। इस योग से इस दिन के पूजन, पाठ, दान का महत्व स्थाई और व्यापक होगा।

ज्योतिषी दुर्गेश शर्मा के अनुसार इस साल आखा, अक्षय, आंवला नवमी का पर्व रविवार 10 नवंबर को मनाया जाएगा। व्रत भी 10 नवंबर के दिन किया जायेगा। हालांकि नवमी तिथी का आरम्भ 09 नवम्बर शनिवार रात्रि 8:00 से होगा लेकिन नवम तिथि का समाप्ति 10 नवम्बर रविवार शाम करीब 08 बजे होगा।  

 *इन ग्रह योगों ने बढ़ाई महत्ता* 

सूर्य तुला राशि में संचरण करेंगें, मंगल कर्क राशि में,बुध वृश्चिक राशि में गुरु वृष राशि में शुक्र धनु राशि में शनि कुंभ राशि में बैठकर शशयोग का निर्माण हुआ है। राहु मीन राशि में केतू तुला राशि में चंद्रमा मीन राशि में संचरण करेंगें जिसे अक्षय नवमी बहुत प्रभावी बन गया है। साथ ही रवियोग भी 10 नवम्बर 2024 सुबह 10:59 से 06: 04 सुबह (11 नवंबर 2024 ) तक बनेगा।

श्री हरि लक्ष्मी करते हैं निवास

आंवला नवमी का का पूजन कार्तिक शुक्लपक्ष के नवमी तिथि को मनाया जाता है इस व्रत को कई नाम से जाना जाता है इन्हे अक्षय नवमी,आंवला पूजन, कुष्मांडा पूजन, धात्री पूजन के नाम से जाना जाता है।  देवउठनी एकादशी के दो दिन पहले अक्षय नवमी पड़ने के कारण भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। मान्यता है इस दिन जगत के पालनहार भगवन विष्णु स्वयं आंवले के पेड़ पर विद्यमान रहते हैं। इस दिन श्री हरि और मां लक्ष्मी की पूजा विस्तृत रूप से की जाती है। इस दिन जो भी कार्य करते है सब अक्षय होता है। अक्षय का मतलब कभी क्षय नहीं होना इसलिए दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन पूजन, हवन, धूप, अध्ययन, पाठ, सेवा, दान करने का महत्व पुराणों में बताया गया है।

अमृत तुल्य है आंवला, बुध, शुक्र से नाता

आंवले के पेड़ का नाता बुध और शुक्र ग्रह से है। वहीं, इसमें भगवान विष्णु और ब्रह्मा का वास माना गया है। वाला एक ऐसी औषधि है भी है जिसका सेवन अत्यधिक गुणकारी है। आवाले का फल धरती पर पाए जाने वाले सभी फलों में सर्वाधिक उपयुक्त कहा गया है। पुराणों में मान्यता है कि इसके नियमित सेवन से बुढ़ापा, बीमारियां, मानसिक संताप, शारीरिक कमजोरी तथा दुख सभी दूर रहते हैं। यह भी माना जाता है कि अवल के सेवन से बुध तथा शुक्र ग्रह मजबूत होते हैं और शत्रु ग्रहों के हानिकारक प्रभाव कम होते है। 

पेड़ लगाने से मिलता है अक्षय यश 

पुराणों में वर्णित है कि आंवले के पेड़ के पूजन, दर्शन, सेवन से लाभ मिलता है। परंतु इससे सहस्त्र गुना अधिक फल पेड़ लगाने से मिलता है। आंवले का पौधा अक्षय नवमी के दिन पूर्व या उत्तर दिशा में लगाना सबसे उत्तम है। आंवला रोपने से सैकड़ों पाप क्षमा हो जाते हैं।

-Religion desk@ newsmpg

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Sat, 09 Nov 2024 23:22:40 +0530 newsmpg
निष्ठा कावड़ यात्रा आज : रतलाम के 351 कावड़िये माही के जल से करेंगे उज्जैन में बाबा महाकाल का जलाभिषेक https://newsmpg.com/Kawad-Yatri-from-Ratlam-will-carry-the-pious-water-of-river-Mahi-and-do-Abhishek-of-Mahakal-in-Ujjain https://newsmpg.com/Kawad-Yatri-from-Ratlam-will-carry-the-pious-water-of-river-Mahi-and-do-Abhishek-of-Mahakal-in-Ujjain

रतलाम @newsmpg.com ।  रतलाम के कावड़िये पुराणों में ख्यात माही जी के जल से बाबा महाकाल का जलाभिषेक करेंगे। दूसरी बार निष्ठा कावड़ यात्रा में शामिल कावड़िये श्रद्धा और भक्ति में लीन होकर नाचते, गाते माही जी का जल भरकर उज्जैन पंहुचेंगे। उज्जैन में सोमवार को महाकाल का जलाभिषेक कर उनसे सभी के लिए आशीर्वाद मांगेगे। 
9 अगस्त की सुबह 7 बजे भव्य निष्ठा कावड़ यात्रा-2024 प्रारंभ होगी। लगातार दूसरे वर्ष निकाली जा रही इस भव्य कावड़ यात्रा में 351 कावड़ यात्री बम-बम भोले के जयघोष के साथ उज्जैन के लिए रवाना होंगे। ढ़ोल, बाजों के साथ भजनों पर थिरकते, उत्साह के साथ गाते हुए भक्त रतलाम से उज्जैन तक पैदल चलेंगे। पूरे रास्ते कावड़ियों के लिए ठहरने, खाने, पीने के भी प्रबंध रहेंगे। उज्जैन पंहुचकर कावड़िये 12 अगस्त को बाबा महाकालेश्वर का विधि-विधान पूर्वक जलाभिषेक करेंगे। सभी की ओर से प्रणाम कर आशीर्वाद भी मांगेगे। 

नगर में भी होगा भ्रमण 

भव्य निष्ठा कावड़ यात्र-2024 के संयोजक वैभव जाट (सन्नी पहलवान,  जवाहर व्यायामशाला, अम्बर परिवार द्वारा निकाली जा रही है। 9 अगस्त को काटजू नगर स्थित आमलिया भेरू जी की महाआरती के साथ यात्रा का प्रारंभ होगा। शिव शक्ति के गण भगवान भैरव महाराज की पूजन-अर्चना के बाद महाआरती कर बाबा भोलेनाथ और मां माही के स्मरण और जयघोष के साथ यात्रा यहां से बढ़ेगी। कावड़ यात्रा सैलाना बस स्टैंड से होते हुए पावर हाउस रोड, दो बत्ती, फव्वारा चौक, सालाखेड़ी से ग्राम रूनीजा से होते हुए खरसौद खुर्द, चंदूखेड़ी होते हुए बाबा महाकाल की नगर उज्जैन पंहुचेंगी। यात्रा संयोजक वैभव जाट सहित जवाहर व्यायामशाला और अंबर परिवार ने शहर की धर्म प्रेमी जनता से ज्यादा से ज्यादा की संख्या में कावड़ यात्रा में शामिल होकर धर्म लाभ लेने की अपील की है।

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Thu, 08 Aug 2024 17:09:59 +0530 newsmpg
उज्जैन में महाकाल का अभिषेक कर रतलाम में जिस शिवालय के पैर पखारती है शिप्रा, वहां बनेगा महाकाल का दूसरा धाम https://newsmpg.com/After-consecrating-Mahakal-in-Ujjain-Shipra-washes-the-feet-of-the-Shiva-temple-in-Ratlam-where-Mahakals-second-Dham-will-be-built https://newsmpg.com/After-consecrating-Mahakal-in-Ujjain-Shipra-washes-the-feet-of-the-Shiva-temple-in-Ratlam-where-Mahakals-second-Dham-will-be-built रतलाम @NEWSMPG.

जिले में स्थित वर्षों पुराने, ऐतिहासिक और चमत्कारी स्थान को भव्य नया स्वरूप मिल सकता है। आलोट स्थित शिपावरा को लेकर जिला प्रशासन ने एक वहृद कार्ययोजना तैयार कर शासन को भेजी है। शिप्रा एवं उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत को लेकर गंभीर सीएम के रहते इसके शीघ्र ही स्वीकृत होने के आसार हैं। 

चंबल और पुराणों में मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी का संगम रतलाम जिले के आलोट क्षेत्र के ग्राम शिपावरा में है। ठीक संगम स्थल पर टापू के समान हजारों साल पुराना शिवधाम है। लेकिन पानी के कटाव और रखरखाव के अभाव में यह कई सालों से बदहाल अवस्था में था। यहां वर्तमान में मंदिर के आसपास का स्थल जर्जर हो रहा है और टूटी रेलिंग और मिट्टी के कटाव से स्थल को नुकसान बढ़ता जा रहा है। यहां तक आने के लिए नदियों और पहाड़ियों के बीच से रास्ता भी कच्चा और पथरीला है। 

कलेक्टर ने किया निरीक्षण, बना करोड़ों का प्रोजेक्ट 

कलेक्टर राजेश बाथम ने अब इस जगह की सुध ली है और इसके लिए 23 करोड़ को प्रोजेक्ट शासन को भेजा हैं। इसके लिए पिछले दिनों कलेक्टर बाथम ने स्वयं यंहा का दौर कर अति प्राचीन दीपेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन किए। कलेक्टर ने घाटो का निरीक्षण किया और यहां की प्राचीनता का अध्ययन कर इसके अनुरूप कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए थे। 

रतलाम प्रशासन ने जो कार्ययोजना बनाई है यदि वह स्वीकृत हुई तो यह आसपास के सबसे बड़ा पर्यटन केंद्र बन सकता है। इससे प्राचीन इतिहास और पर्यावरण की रक्षा के साथ रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे। 

ऐसा बन सकता है नया स्थान 

यदि प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ तो सैकड़ों किलोमीटर तक फैले टापू में शिव के चेहरे की आकृति में इको फोरेस्ट, मंदिर का जीर्णोंद्धार, नई धर्मशाला, पुजारी के रहने का स्थान और पार्किंग बनाई जाएगी। नदियों से हो रहे कटाव रोकने के लिए रेलिंग और पक्के घाट बनेंगे। लाइटिंग और सौर्दय के साथ इतिहास और सांस्कृति विरासतों को सहेजा जाएगा। रास्ते भी पक्के किए जाएंगे। 

https://newsmpg.com/Connected-to-Adi-Guru-Shankaracharya-this-Ratlam-Dham-is-filled-with-64-Samadhis-and-the-mystery-of-Mahashiv--Even-today

सात साल रीसर्च में हड़प्पाकाल के मिले हैं अवशेष 

1990 से 97 तक आलोट-सोंधवाड़ क्षेत्र की कई प्रागैतिहासिक क्षेत्रों में इतिहासकारों ने अध्य्यन किया था। राष्ट्रीय सेवा योजना पौराणिक खोज यात्रा दल में शामिल रहे डॉ. रमन सोलंकी ने बताया था कि नदी मिलन पर 3200 साल पुरानी ताम्राश्म युगीन सभ्यता के अवशेष मिले थे।

पुरावशेषों में अनेक प्रकार के लघु औजार यथा- क्रोड, लुनेट फलक, माइक्रो लिथ के साथ ही मनके, मृद्भांड, बीट्स आदि प्रमुख थे। वहां 100 फीट ऊंचा सदियों पुराना टीला भी मिला। यात्रा में उज्जैन संभाग से 80 सदस्यीय पुरातात्विक शोधार्थीं व विशेष शामिल थे जिसमें रासेयो के संभागीय समन्वयक डॉ. प्रशांत पौराणिक, डॉ. रमन सोलंकी, डॉ. राजेश मीना, डॉ. मंजू यादव समेत अन्य विशेषज्ञ थे। ऐसे में इस स्थल पर विकसित सभ्यता के हड़प्पाकालीन सभ्यता के समकालीन होने को प्रमाणित किया गया था। 

विक्रम विवि में भी हुआ अध्य्यन 

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के आचार्य एवं कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने बताया था कि शिपावरा पाँच हजार वर्ष पुरातन सभ्यता के अवशेषों को समेटे हुए है। 1992 ईस्वी में सुधी पुराविद डॉ. श्यामसुंदर निगम के मार्गदर्शन में मेरे द्वारा शिपावरा क्षेत्र को लेकर किए गए समन्वेषण में विपुल पुरासामग्री का अनुशीलन किया गया था। इस कार्य में शिक्षाविद  कैलाशचंद्र दुबे, कलामनीषी रमेश सोनगरा और विवेक नागर सहभागी बने थे।

पुलत्सय ऋषि की तपोस्थली

मंदिर और आसपास आज भी कई प्राचीन समाधियाँ हैं। मंदिर के महंत रमेशपुरी गोस्वामी के अनुसार यहां के सूर्य कुण्ड के समीप रावण के दादा  श्री पुलतस्य ऋषि ने तप किया था। लोकमान्यता हैं कि भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिवे इस स्थल पर दीपक के नीचे छुपे थे। इतिहासकारों द्वारा की गई खुदाई में यहां से कई प्राचीन और अत्याधिक बड़े दीपक जमीन से निकले भी थे। इसी कारण इन्हें दीपेश्वर महादेव कहा जाता है। संगम-तट पर दशनामी  साधुओं की समाधियाँ भी हैं जो यहां रहकर तप, साधना करते थे और कई ने यहां जीवित समाधियां भी ली हैं। 

मराठा, परमार और नवाबों ने करवाए जीर्णोद्धार 

पुरात्तवविद डॉ. अजीत रायजादा के अनुसार दोनों नदियों के समीप बाद में पक्के घाट और मंदिरों का पुनर्निर्माण मराठा काल में हुआ। इसके पहले परमार राजाओं की इस मंदिर में गहरी आस्था थी और उनके काल में मंदिरों के अवशेषों का प्रयोग किया गया है। जीर्णोद्धार में परमारों ने मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया था जिसके स्थापत्य एवं मूर्तिकला से यह बात सिद्ध होती है। यहाँ परमारकाल के खंडित अभिलेख के साथ देवालयों के भग्नावशेष भी हैं। इसके बाद यहां जावरा के नवाब भी आया करते थे जिन्होंने रियासतकाल में शिकारगाह भी बनवाया और पंडित तथा आने वालों के रुकने के लिए धर्मशाला भी। 

वेदों से लेकर कालीदास तक ने किया वर्णन 

यजुर्वेद में शिप्रे अवे: पय: के द्वारा शिप्रा का स्मरण हुआ है। शिप्रा का उदगम और संगम दोनों स्थल अति महत्वपूर्ण हैं। महू के कांकर बर्डी पहाड़ी से शुरू होकर शिप्रा खान, गंभीर, ऐन, गांगी और लूनी को समाहित करती हुई सिपावरा में 120 मील की यात्रा करती हुई चम्बल (चर्मण्यवती) में मिलती हैं। महाकवि कालिदास ने इसी संगम स्थल का सरस वर्णन मेघदूत में किया है। एक ओर खास बात है कि इस मंदिर तक का रास्ता और टीला रतलाम में है। सामने  सीतामऊ (जिला-मन्दसौर) और तीसरी ओर चौमेहला (राजस्थान) है।

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Mon, 05 Aug 2024 18:59:30 +0530 newsmpg
मिशनरी हमसे डरती है, इस्लामिक राष्ट्र दे रहे मंदिर को सुरक्षा, राष्ट्र संत ने कहीं रतलाम में बड़ी बातें https://newsmpg.com/Missionaries-do-not-stop-us-even--Islamic-countries-are-giving-protection-to-temples https://newsmpg.com/Missionaries-do-not-stop-us-even--Islamic-countries-are-giving-protection-to-temples  बी.ए.पी.एस. स्वामीनारायण संस्था के वरिष्ठ संत विवेकसागर जी ने किया रतलाम प्रवास

रतलाम। संत धर्म प्रचार के लिए आदिवासी क्षेत्रों में जाते हैं और उन्हें अपनी संस्कृति और धर्म के व्यापक रूप के बारे में बताते हैं तो वे भी तमाम परेशानियों के बाद भी आध्यात्म से जुड़ते हैं। मिशनरी हमें रोकती नहीं वे हमसे डरती हैं। डरने का आषय हिंसा के भय से नहीं कर्म के भय से हैं। हम प्रलोभन नहीं देते, हम संबल देते हैं। हमारे पंहुचने से उनका काम मुश्किल हो जाता है।

स्वामीजीनारण जी के पास सबसे बड़े शस्त्र थे, वे थे गुलाब और माला है। गुलाब प्रेम का प्रतीक और माला भक्ति का प्रतीक है। इस्लामिक देश ने भी शांति और प्रेम के संदेश और सेवा को देखकर मंदिरों के लिए स्वेच्छा से भूमि दान की है। मुस्लिम मूर्ति पूजा में नहीं मानते हैं, लेकिन वहां मंदिरों को नुकसान पंहुचाने पर सरकार ने कड़ी सजा के प्रावधान किए गए हैं। युनाईटेड अरब अमीरात के आबूधाबी में अक्षरधाम मंदिर वहीं के सहयोग से बना है। हाल ही में थाईलैंड में भी अक्षरधाम मंदिर का लोकार्पण हुआ है, जो सभी के लिए गर्व का विषय है। धर्म मानवमात्र के लिए होता है और इसका मूल मानवता ही है।

बी.ए.पी.एस. स्वामीनारायण संस्था के वरिष्ठ संत और अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक स्वामी विवेकसागर जी एक दिवसीय प्रवास पर मंगलवार को रतलाम पधारे। इस अवसर पर स्वामी जी ने मीडियाकर्मियों से विशेष चर्चा में सवालों के जवाब में यह बातें कहीं।

धर्म नहीं जीने का तरीके बदलें

स्वामीजी ने कहा कि व्यक्ति को जीवन सुधारने के लिए धर्म नहीं जिंदगी जीने का ढ़ंग बदलना चाहिए। स्वामीनारायणजी की सीख और संस्कारों पर चलते हुए संस्था के संत आज भरत भर में फैलकर सेवा कार्य कर ही रहे हैं। लंदन, अफ्रीका, आबू धाबी, थाईलेंड, यूरोप के कई देशों में भी न केवल अक्षरधाम मंदिर बन रहे हैं बल्कि एमबीबीएस, प्रोफेसर से लेकर वंचित आदिवासी, पीड़ित तक संत बनकर सेवा और आध्यात्म के साथ जुड़ रहे हैं। यह समाज को मानवता के एक पटल पर लाने के प्रयासों की सार्थकता है।

यूएन ने भी संस्था को दिया है सशक्त स्थान

स्वामी विवेकसागर जी ने कहा कि स्वामीनारायण संप्रदाय आदिवासियों, पीड़ितों, वंचितों की सेवा में लगा ही रहता है। इसी ध्येय के साथ प्रभु स्वामीनारायण ने अंग्रेजी हुकुमत काल में भी सतत कार्य किए। 2 लाख से भी ज्यादा आदिवासियों का जीवन बदला। विशेषकर गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान के क्षेत्र में घर-घर जाकर लोगों को व्यसन, पाप और लोभ से दूर रहकर सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देते रहे। स्वामीनारायण उनके प्रभाव को अंग्रेजी गर्वनर और सरकारों से भी माना था। वर्तमान में यूएन में भी संस्था को सशक्त स्थान दिया जाता है। संस्था वंचितों के इलाकों में संस्था अस्पताल, स्कूल बनवाने के साथ उन्हें प्रवचन और अन्य संबल प्रदान कर रही है।

55 देशों से अधिक की कर चुके यात्रा

उल्लेखनीय है संत विवेकसागर जी टैक्सटाइल्स इंजीनियर थे और उन्होंने संत योगीजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की थी। उपनिषद, भागवत आदि शास्त्रों के मर्मज्ञ तथा पीएचडी तथा संस्कृत में डी-लीट भी हैं। स्वामीजी ने 30 से अधिक धार्मिक पुस्तकें लिखी हैं तथा देश विदेश में निरन्तर विचरण कर धर्म का प्रसार करते हंै। स्वामी जी विश्व के 55 देशों की यात्रा कर विचार रख चुके हैं तथा भारत में भ्रमण कर धर्म प्रचार करते रहते हैं। हाल ही में आबूधाबी में थाईलेंड में भी अक्षरधाम मंदिरों का निर्माण प्रारंभ हुआ है। रतलाम प्रवास के दौरान स्वामीजी ने विभिन्न धार्मिक आयोजनों के साथ गुजराती समाज विद्यालय में नवनिर्मित कक्षो के लोकार्पण किया। शाम को अजंता पैलेस में संत समागम में भी आशीर्वाद दिया। 

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Tue, 30 Jul 2024 20:07:19 +0530 newsmpg
आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़ा, 64 समाधियों और महाशिव के रहस्य से भरा है रतलाम का ये धाम  & शहर के बीचों बीच आज भी है हजारों संतों का तपस्या स्थल  https://newsmpg.com/Connected-to-Adi-Guru-Shankaracharya-this-Ratlam-Dham-is-filled-with-64-Samadhis-and-the-mystery-of-Mahashiv--Even-today https://newsmpg.com/Connected-to-Adi-Guru-Shankaracharya-this-Ratlam-Dham-is-filled-with-64-Samadhis-and-the-mystery-of-Mahashiv--Even-today

सनातन धर्म में श्रावण मास की बड़ी महत्ता है। चातुर्मास की शुरुआत गुरु पूर्णिमा के साथ हो चुकी है और अब पूरे सावन भगवान श्री महादेव और महाशक्ति की आराधना चलेगी। कम ही लोग जानते हैं कि सेंव, साड़ी, सोना के लिए प्रसिद्ध वर्तमान का रतलाम और प्राचीन काल की रत्नपुरी का इतिहास भगवान महादेव और महाशक्ति से प्राचीन काल से रहस्मयी तरीके से जुड़ा है। रतलाम रियासत की स्थापना से लेकर इसके वंशजों के राज पाठ हाथ से हारने और फिर पाने तक में भगवान शिव और शक्ति की विशेष कृपा की कई सच्ची कहानियां हैं जिनके साक्ष्य आज भी जीवित हैं। उज्जयनी और भानपुरा के बीच रत्नपुरी में आदि गुरु शंकराचार्य से लेकर कई ख्यात संत, साधुओं और साक्षात ईश्वर के कई रोचक प्रसंग आज भी जीवित हैं। 
इस सावन मास हम अपने पाठकों के लिए रत्नपुरी रतलाम के ऐसे ही ऐतिहासिक, चमत्कारी स्थानों की न केवल प्रचलित कहानियां बल्कि उनके पीछे के ऐतिहासिक साक्ष्य, ठोस आधारों को इस श्रृंखला में सामने लाए। 

भाग- 1 

लोगों को कुचल रहे बिगड़ैल हाथी के कारण स्थापित हुआ रतलाम

रतलाम के सबसे प्राचीन धाम का इतिहास रत्नपुरी रियासत की स्थापना से भी पुराना है। मेवाड़ के महाराज उदयसिंह के पड़पोते रतनसिंह महान वीर थे। वे पिता के साथ शाहजहां से मिलने आगरा गए थे जहां सम्राट का पसंदीदा हाथी बिगड़ गया और किसी के नियंत्रण में नहीं आ रहा था और कई लोगों को कुचल दिया। रतन सिंह ने उस हाथी को काबू में कर रोक दिया था जिसे देखकर शाहजहां इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने धराड़, रावटी, धामनोद, बदनावर, दगपरावा, आलोट, तीतरोद, आगर, नाहरगढ़, और रामगढ़िया के परगना उन्हें राज करने के लिए और महाराजा की उपाधि दे दी। 

तपस्या, एकांत और साधना के लिए स्थापित हुआ मठ 

उज्जैन से लेकर भानपुरा तक आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों के साधु, संत तथा अन्य संत जन धर्म के प्रचार के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे। उस समय घने जंगलों, गांवों के बीच पैदल सफर ही होती था। रतलाम में उस समय आदि गुरु शंकराचार्य के परम शिष्यों ने एक मठ की स्थापना की थी। इसी समय महाराजा रतन सिंह ने 1652 में रत्नपुरी राज की स्थापना की और मठ के समीप ही अपना राजमहल बनवाया। मठ का नेतृत्व तब दंडी स्वामी करते थे और यहां यज्ञ, तपश्चर्य, साधना में रत साधु,संत आकर रुकते और तपस्य करते थे। महाराजा रतनसिंह ने साधुसंतों की सुविधा के लिए मठ के समीप दो मुंह की बावड़ी का भी निर्माण करवाया। परंतु 1657 में रतन सिंह शाहजहाँ के गद्दार बेटे औरंगजेब की सेना से लड़ते हुए धर्मतपुर (धर्माठ) में लड़ते हुए युद्ध में मारे गए। उनकी पत्नी महारानी सुखरूपदे कंवर शेखावत साहिबा सती हो गईं थीं। 

ऐसा होता है दंडी स्वामी का जीवन 

रतलाम में स्थापित मठ के प्रमुख दंडी स्वामी होते थे और आज भी हैं। शास्त्रों में दंड को 'ब्रह्म दंड' भी कहा गया है जो विशेष योग्यता प्राप्त करने पर एक संन्यासी को प्राप्त होता है। आदि शंकराचार्य का चयन संतों ने पहले दंडी स्वामी के रूप में किया था जिसके बाद से उनके चयनित शिष्य ही इसे धारण करते आ रहे हैं। दंडी संन्यासी मूर्ति पूजा से दूर और एकांत में रहते हैं। बिना किसी बिस्तर, भौतिक साधनों के कठिन अनुशासन भरे जीवन में यज्ञ, मंत्रोचार और साधना करते हैं। दंडी संन्यासी नागा भी होते हैं या बिना सिले वस्त्र धारण करते हैं। बर्तनों तक का उपयोग नहीं करते और दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। खास बात है कि वे दूसरों की सहायता करने के लिए प्रतिदिन केवल सात घरों से भीख मांगते हैं और नहीं मिलने पर भूखे रहते हैं। 

64 संतों की यहां हैं समाधि 

यह रतलाम जिले का सबसे पुराना गुरु आश्रम है और यहां स्थित मूल शिवलिंग रामेश्वरम से लाई गई थी। तब यहां आबादी नहीं थी लेकिन गुरुभक्त दर्शनंो और सेवा के लिए आते थे। आश्रम में 8 पीढियों और सैकड़ों वर्षों से पूजा का दायित्व निभाने वाले व्यास परिवार के वर्तमान पंडित भूपेंद्र कुमार व्यास बताते हैं कि यहां स्थापित शिवलिंग इतना दिव्य और चमत्कारी हैं कि इतनी सदियों में हजारों साधु, संतों ने यहां बैठकर तपस्या और मोक्ष प्राप्त किया। मान्यता अनुसार जब कोई दंडी संन्यासी धरती छोड़ता है तो उसका दाह संस्कार नहीं किया जाता। शरीर का विघटन प्रारंभिक चरण में होता है और वे इस अवधि में निर्वाण प्राप्त करते हैं। संन्यासियों को समाधि दी जाती रही है। आश्रम में 19वीं सदी के प्रारंभ तक ही 64 साधुओं ने निर्वाण प्राप्त किया जिनकी समाधि आश्रम में बनाई गई हैं। आश्रम में ही 1906 में ब्रह्मलीन प्रद्युमानंद जी महाराज, 1945 में राघवानंद जी तीर्थ और 2006 में सच्चितानंद भारती जी समाधिष्ट हुए हैं। इनकी समाधियां भी आश्रम में स्थित हैं। इन समाधियों पर 64 शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। 

500 सालों से आज भी रहते हैं दंडी स्वामी

रतलाम में आज के कॉलेज रोड पर स्थित दंडी स्वामी मठ इतना अद्भुत स्थान हैं जहां पिछले लगभग 500 सालों से दंडी स्वामी विराजमान रहते हैं। यह मठ शारदा पीठ के अधीन है और सौजत्न पुल्लनारायण आश्रम, विल्वमाल, रतलाम और बनारस ज्ञानी मठ के साधु संतों का लोकप्रिय स्थान रहा है। वर्तमान में भी श्रृंगेरी मठ के दंडी स्वामी श्री आत्मानंद जी सरस्वती 2022 से यहां रहते हैं। श्रृंगेरी मठ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक हैं और विश्व विख्यात रामेश्वर मंदिर से संबद्ध है। श्री व्यास बताते हैं कि दंडी स्वामी मठ में विराजित महादेव और महाशिक्त के चमत्कारों की हजारों कहानियां हैं। कहा जाता हैं कि यहां शिक्षा, समृद्धि, साधना, मोक्ष तक की कामना से साधु, संत ही नहीं सदियों से भक्त भी आते रहे हैं। यहां विराजित समाधियां और साधु, सन्यासियों की तपस्य स्थल होने से मठ में प्रवेश करते ही व्यक्ति को दिव्य अनुभूति होती है। 

- अदिति मिश्रा 

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Tue, 23 Jul 2024 17:00:50 +0530 newsmpg
कहीं खंबे करते हैं पाप&पुण्य का हिसाब, कहीं शिवलिंग के नीचे छुपी है शिवलिंग & जानिये रहस्यों से भरे रतलाम जिले के अतिप्राचीन शिवधाम https://newsmpg.com/Somewhere-the-pillars-calculate-the-sins-and-virtues-somewhere-the-Shivlinga-is-hidden-under-the-Shivlinga--know-the-ancient-Shivdham-of-Ratlam https://newsmpg.com/Somewhere-the-pillars-calculate-the-sins-and-virtues-somewhere-the-Shivlinga-is-hidden-under-the-Shivlinga--know-the-ancient-Shivdham-of-Ratlam

धार्मिक डेस्क @newsmpg.   भगवान महादेव के दिव्य और चमत्कारी धाम वैसे तो भारत के घट-घट में विराजित हैं, लेकिन भगवान भोलेनाथ के धामों से रतलाम की धरा बहुत विभूषित है। उज्जैन और भानपुरा, राजस्थान के बीच स्थित होने से रतलाम में सदियों पुराने, दिव्य और चमत्कारों से भरे कई शिवधाम हैं। इनमें से कुछ तो लोग आस्था का बड़ा केंद्र बन गए हैं, जबकि कुछ अब भी एकांत में तप का केंद्र हैं। 


1 हजार साल से रहस्य समेटे हैं महाकाल 

रतलाम के करीब ग्राम धराड़ है जहां से गुजरती है कर्क रेखा। इसी गांव में हैं 11वीं सदी में बना महाकालेश्वर मंदिर जो ठीक रेखा पर स्थित है। तीन मंजिला मंदिर का निर्माण परमार राजाओं ने लगभग 10वीं या 11वीं सदी में करवाया था। चमत्कारी होने के साथ मंदिर रहस्यमयी भी है। इसमें जमीनी तल पर महाकाल की लगभग डेढ़ हजार साल पुरानी शिवलिंग है। जबकि जमीन से नीचे भी हैं, जिसमें पंचमुखी महादेव ऊपर वाली शिवलिंग के नीचे न जाने कब से विराजित हैं। सबसे ऊपरी तल पर साधना कक्ष है जहां प्राचीन काल में संत आकर तपस्या करते थे। 
इस मंदिर का महत्व इतना है कि1982 में पुरातत्व विभाग ने मंदिर का अधिग्रहण कर लिया। माना जाता है कि रतलाम के संस्थापक महाराजा रतनसिंह धराड़ आए थे और यहीं पूजन करके रतलाम बसाया था। संत सुंदर गिरी जी महाराज 1950 में धराड़ पहुंचे थे। तब उन्होंने शिव मंदिर में जाने की इच्छा प्रकट की थी। जब वे मंदिर पहुंचे तो दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया था जब तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं होगा तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। इसे पहले फूटला मंदिर के नाम से जाना जाता था। 


भूल भुलैया वाले विश्व प्रसिद्ध विरुपाक्ष 

बिलपांक गांव में स्थित भूल-भूलैया वाला विरुपाक्ष महादेव विश्व प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर है। महाशिवरात्रि पर्व पर 48 सालों से महारुद्र यज्ञ हो रहा है। मान्यता है कि पूणार्हुति के दिन यहां नि:संतान महिलाएं खीर का प्रसाद ग्रहण करती हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर भी परमार कालीन और लगभग 11वी सदी में निर्मित होकर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां 64 खंबे मंदिर में हैं, लेकिन मान्यता है कि कभी भी कोई भी व्यक्ति इनकी गिनती नहीं लगा सकता। इस दिव्य मंदिर में भी हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। 


खंबे करते हैं पाप और पुण्य का हिसाब

गुणावाद गांव में यहां श्रद्धालुओं को पाप पुण्य की जानकारी भी मिलती है। मलेनी नदी किनारे एक पहाड़ी पर विराजित यह मंदिर भी सदियों पुराना है। मान्यता है कि उड़कर आया है। प्रचीन मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश से ठीक पहले दांयी व बाईं ओर 2 -2 स्तंभ के जोड़े है। दांयी ओर 2 स्तम्भ के बीच से यदि कोई निकल जाता है तो माना जाता है उस इंसान ने जीवन में पुण्य कार्य किये हैं। जो व्यक्ति बाई ओर बने 2 स्तम्भ के बीच से निकल जाता है, उसे पाप से मुक्ति मिल जाती है। इन्हें पाप और पुण्य के स्तम्भ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि मंदिर के पास खुदाई में प्राचीन प्रतिमाएं भी मिली हैं। इसमें सास बहू के साथ के छाछ मथने की तस्वीर पत्थर पर गड़ी है। श्रद्धालु यहां बड़ी आस्था के साथ आते हैं और अपनी मनोकामना का आशीर्वाद लेते  हैं। 


अनादि काल से विराजित हैं अनादि कल्पेश्वर 

जिले आलोट में अनादि कल्पेश्वर महादेव भी विराजित हैं, जो चमत्कारों का केंद्र है। उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर यहां भी शाही सवारी निकलती है। भगवान अनादि कल्पेश्वर का पुराना मंदिर 1200 साल से भी ज्यादा प्राचीन है। यह मंदिर भी हजारों की आस्था का केंद्र होने के साथ चमत्कारी है। मंदिर के समीप कुंड और गोमुखी हैं, जहां प्राचीन समय में लोग स्नान करके पाप धोने आते थे। मंदिर की बनावट और शिल्पकला भी खास है। 


शिप्रा-चंबल के संगम पर है पुलत्स्य ऋषि की तपोभूमि 

सिंहस्थ में सर्व पाप मोचनी शिप्रा और महाशक्तिशाली चंबल नदी का संगम स्थल रतलाम जिले के आलोट के पास है। यहीं टापू पर है लगभग डेढ हजार से भी ज्यादा पुराना शिपावरा धाम। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित होने के अलावा इस मंदिर के इतिहास में छुपे रहस्यों पर विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा शोध भी किया जा चुका है। यह मंदिर पुलत्स ऋषी की तपोस्थली मानी जाती है। मंदिर इतना प्राचीन है और यहां जमीन के नीचे से अति प्रचाीन दीपक भी मिले हैं। कहा जाता है कि जब मोहिनी रूप भगवान विष्णु ने रखा था, तब भगवान भोलेनाथ इसी स्थान पर राक्षस से बचने के लिए छुपे थे। रहस्यों और इतिहास के हजारों पक्ष समेटे यह मंदिर मप्र ही नहीं राजस्थान से आने वाले हजारों श्रद्धांलुओं की आस्था का केंद्र है। 

जहां एकसाथ होते हैं 68 शिवों के दर्शन 
शहर के बीच दण्डिस्वामी संतो के मठ में प्राचीन शिव मंदिर है, जिसमें शिव पार्वती की प्रतिमा के साथ 68 शिवलिंग हैं। सालो से यहां कोई न कोई दण्डिस्वामी रहते आये हैं। वहीं पुराने समय में दण्डिस्वामी संतो की मृत्यु पश्चात इसी परिसर में उनकी समाधि भी बनाई गई थी। सारे शिवलिंग की एकसाथ पूजा के कारण इस मंदिर पर शिव भक्तों का खास आकर्षण रहता है। 

पांडव काल से विराजित महादेव 

रतलाम जिल की पिपलौदा तहसील के ग्राम आम्बा के समीप ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र है, जो हर दृष्टि से रमणीय केंद्र है। मंदिर धरती से नीचे, झरने के पीछे जंगल के बीचों, बीच गुफा में स्थित है। यहां इतनी बड़ा गुफा आज भी विद्यमान हैं जहां 50-100 लोग बैठकर तपस्या कर सकते हैं। झरने से और नीचे बहते पानी के तल पर पहाड़ियों पर विशाल आदि कालीन आकृतियां भी विद्यमान हैं जो कब बनी किसी को पता नहीं। कहा जाता है कि यह आकृतियां महाभारत कालीना हैं, हालांकि इसका ठोस प्रमाण नहीं है लेकिन भक्तों की आस्था अटूट है। 

रतलाम के राजा भगवान गढ़कैलाश 

रतलाम के राजा भगवान गढ़कैलाश का मंदिर भी अमृतसागर तालाब के किनारे विराजित है। यह मंदिर भी करीब 600 साल पुराना है और रतलाम की स्थापना का परिचायक भी। भगवान गढ़कैलाश के मंदिर की विशेषता है कि शिवलिंग के स्थान पर शिव परिवार और भोलेनाथ की बैठी हुई भव्य प्रतिमा है। 

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Thu, 07 Mar 2024 16:27:06 +0530 newsmpg
Meditation for IQ : फोकस और आईक्यू भी बढ़ा सकती है मेडिटेशन, जानिए क्या है इसे करने का सही तरीका https://newsmpg.com/meditation-for-iq-फकस-और-आईकय-भ-बढ-सकत-ह-मडटशन-जनए-कय-ह-इस-करन-क-सह-तरक https://newsmpg.com/meditation-for-iq-फकस-और-आईकय-भ-बढ-सकत-ह-मडटशन-जनए-कय-ह-इस-करन-क-सह-तरक महात्मा बुद्ध ने ज्ञान पाने का रास्ता मेडिटेशन को बनाया था। उनके लिए ज्ञान पाने का मतलब अपनी बुद्धि को जगाना था। बुद्धि को जगाने के लिए उन्होंने अपने मन के हर विकारों जैसे कि चिंता, क्रोध, तनाव आदि को दूर किया। मन के इन विकारों को भी दूर करने के लिए उन्होंने ध्यान का ही सहारा लिया। जिस दिन बुद्ध ने ज्ञान पाया या खुद की बुद्धि को जगा लिया वह दिन विश्व में बोधि दिवस (8 December) के रूप में मनाया जाने लगा। वैज्ञानिक भी अब यह मान चुके हैं कि ध्यान के माध्यम से इंटेलिजेंस को बढ़ाया (Meditation can increase Intelligence) जा सकता है। आइये जानते हैं इस बारे में।

बोधि दिवस (Bodhi Diwas -8 December)

हर साल 8 दिसंबर को बौद्ध बोधि दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन सिद्धार्थ गौतम ने ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया था। बोधि शब्द का अर्थ है जागृति या आत्मज्ञान। इसी वजह से बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के नाम से जाने गये।

याददाश्त बढ़ा सकता है मेडिटेशन (Meditation can increase Memory)

योग विशेषज्ञ आचार्य डॉ.कौशल किशोर बताते हैं, ‘ध्यान तनाव को कम करने, ब्लड प्रेशर कम करने और मूड को बेहतर बनाने में फायदेमंद है। नियमित रूप से ध्यान करने से याददाश्त और आईक्यू भी बढ़ सकती है।’
कॉन्शियसनेस एंड कॉग्निशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन प्रतिभागियों ने चार दिनों तक 20 मिनट तक ध्यान किया, उनमें तनाव के स्तर में कमी के साथ-साथ मेमोरी में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया। जिन लोगों ने ध्यान किया, उन्होंने फंक्शनल मेमोरी वर्क में 10 गुना बेहतर स्कोर प्राप्त किया।
मेंटल हेल्थ जर्नल बताता है कि केवल दो सप्ताह तक माइंडफुलनेस मेडिटेशन से फनक्शनल मेमोरी क्षमता, पढ़ने की समझ और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है।

आई क्यू बढ़ाने में मददगार मेडिटेशन (Meditation can increase IQ)

एसोसिएशन फॉर एप्लाइड साइकोफिजियोलॉजी एंड बायोफीडबैक के शोध परिणाम इस ओर इशारा करते हैं। शोध के अनुसार, जिन प्रतिभागियों ने ध्यान किया, उनमें आई क्यू में औसतन 23 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
इसका कारण यह माना गया कि गहरा ध्यान मस्तिष्क की गतिविधि को धीमा कर देता है। धीमी मस्तिष्क तरंगों के साथ मस्तिष्क खुद को री जुवेनेट करने की क्षमता बढ़ाता है। जब दिमाग को थोड़ा आराम दिया जाता है, तो वह अपने आप बेहतर हो जाता है।

ध्यान और बुद्धि बढ़ाती है (meditation can make intelligent)

मस्तिष्क के दोनों हेमिस्फ़ेयर के साथ काम करने से लेकर याददाश्त बढ़ाने तक, मस्तिष्क के आकार को बढ़ाने और इमोशनल कोशनट (EQ) को बढ़ाने तक में मदद करता है।

कैसे ध्यान आई क्यू बढ़ाता है (In these ways meditation can increase IQ)

1 लेफ्ट और राइट ब्रेन को संतुलित करता है (balance between left and right brain)

ज्यादातर लोग एक मस्तिष्क का दूसरे की तुलना में आधा अधिक उपयोग करते हैं, जिससे असंतुलन पैदा होता है। ध्यान मस्तिष्क के दोनों हेमिस्फ़ेयर को समन्वयित करता है। इससे तेज नर्व कम्युनिकेशन होता है।
जब बायां मस्तिष्क और रचनात्मक दायां मस्तिष्क सामंजस्य में काम करना शुरू करते हैं, तो समस्या को हल करना आसान हो जाता है। रचनात्मकता कई गुना बढ़ जाती है।

intelligence ko badha deta hai dhyan.
ध्यान बुद्धि बढाकर रचनात्मकता भी कई गुना बढ़ा सकता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

गहरी सोच मानक बन जाती है। इससे ध्यान और एकाग्रता बढ़ जाती है।
अत्यधिक सफल लोगों में संपूर्ण मस्तिष्क सिंक्रनाइज़ेशन दिखाया जाता है। और आप भी ध्यान के माध्यम से इस स्थिति को प्राप्त कर सकती हैं।

2 ब्रेन के आकार पर प्रभाव (Meditation effect on Brain size)

अमेरिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि ध्यान मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों की तंत्रिका ग्रे मैटर की मोटाई को बढ़ा देता है।
ध्यान मस्तिष्क को बड़ा, होशियार और तेज़ बनाता है। उसी तरह जैसे शारीरिक व्यायाम मांसपेशियों को अधिक मजबूत और डेंस बनाता है।

3 ब्रेन वेव पैटर्न को सक्षम बनाता है

मस्तिष्क तरंगों को सबसे लाभकारी आवृत्तियों – अल्फा, थीटा और डेल्टा में निर्देशित करके, अनगिनत लाभ सामने आते हैं, जिनमें सुपर रचनात्मकता, शक्तिशाली विचार निर्माण, बढ़ी हुई संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली और विकास के लिए समग्र बौद्धिक क्षमता शामिल है।
ध्यान इन लाभकारी मन की अवस्थाओं तक पहुंचने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है। यह आपके जीवन को कई अलग-अलग तरीकों से बदल देता है।

4 अंतर्ज्ञान को बढ़ाता है

आचार्य डॉ.कौशल किशोर बताते हैं, ‘आंतरिक बुद्धिमत्ता आंतरिक आवाज़ को विकसित करने और सुनने से प्राप्त होती है। अंतर्दृष्टि और अंतर्ज्ञान के रूप में जाना जाने वाला ध्यान इन दोनों अव्यक्त क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
इस विशिष्ट प्रकार की बुद्धिमत्ता को क्विज़ या परीक्षणों से नहीं आंका जा सकता है, यह सभी स्तरों पर अत्यधिक मूल्यवान है। बिना सिखाए अंतर्दृष्टि रचनात्मकता और प्राकृतिक समझ को उत्तेजित करता है।’

bhramari pranayama negative thoughts ko door karta hai.
आंतरिक बुद्धिमत्ता और आंतरिक आवाज़ को विकसित करने  में मदद करता है ध्यान। चित्र : अडोबी स्टॉक

यहां जानिए ध्यान करने का सही तरीका (How to meditate)

आचार्य डॉ.कौशल किशोर के अनुसार, शुरुआत करने के लिए आराम से बैठने के लिए एक शांत जगह ढूंढें। यह सुनिश्चित करें कि आपका फोन बंद हो। कोई भी चीज़ आपको परेशान नहीं कर रही हो।
अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें। स्थिर होने के लिए कुछ क्षण का समय लें।
अपना ध्यान शुरू करें। अपनी आंखें बंद करके सांस लेने और सांस छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करें।
अगले लगभग 20 मिनट तक जितना संभव हो सके, सांस लेने और छोड़ने पर दिमाग केंद्रित करना है।

यह भी पढ़ें :- Pranayama for beginners : हैप्पीनेस और लॉन्गेविटी के लिए इन 3 प्राणायाम से करें शुरुआत, जानिए अभ्यास का सही तरीका

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Fri, 08 Dec 2023 19:55:04 +0530 newsmpg
गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) पर खाया जाता है आम का श्रीखंड, जानें खास रेसिपी और फायदे https://newsmpg.com/गड-पडव-gudi-padwa-पर-खय-जत-ह-आम-क-शरखड-जन-खस-रसप-और-फयद https://newsmpg.com/गड-पडव-gudi-padwa-पर-खय-जत-ह-आम-क-शरखड-जन-खस-रसप-और-फयद कल गुड़ी पड़वा है। इस मौके पर कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कई प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं जिसमें से एक है आम का श्रीखंड।

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Tue, 21 Mar 2023 16:03:19 +0530 newsmpg
Navratri 2023: नवरात्रि पर 10 महाविद्याओं की कृपा पाने के लिए करें ये काम, जानें मूलमंत्र https://newsmpg.com/navratri-2023-नवरतर-पर-10-महवदयओ-क-कप-पन-क-लए-कर-य-कम-जन-मलमतर https://newsmpg.com/navratri-2023-नवरतर-पर-10-महवदयओ-क-कप-पन-क-लए-कर-य-कम-जन-मलमतर Tue, 21 Mar 2023 15:25:32 +0530 newsmpg 13वीं सदी का प्राचीन, चमत्कारी मंदिर, जहां आज बंधती हैं बकरियां, शिवलिंग तक जाता है नाली का पानी  &शहर से मात्र 3 किलोमीटर दूर शिव मंदिर, उदासीनता और स्वार्थ के चलते बन गया खडंहर https://newsmpg.com/Historical-Shiv-temple-probably-built-in-13th-century-stumbling-despite-being-worshiped-by-the-whole-village-cattles-are-tied-in-the-premises-drainage-water-enter-inside https://newsmpg.com/Historical-Shiv-temple-probably-built-in-13th-century-stumbling-despite-being-worshiped-by-the-whole-village-cattles-are-tied-in-the-premises-drainage-water-enter-inside

रतलाम।   दो दिन बाद महाशिवरात्रि का पर्व है और देश-प्रदेश, जिले में भोले बाबा के मंदिरों की साज सज्जा चल रही है। जिले में एक मंदिर ऐसा भी है, जो है तो 13वीं सदी में निर्मित, अति प्राचीन और चमत्कारी, लेकिन वर्तमान समय में प्रांगण बकरियां बांधने के काम आ रहा है। यहां अब भी पूरा गांव पूजा करने आता है, साथ ही नाली का गंदा पानी भी मंदिर में आता है। 
                                                   ये मंदिर है शहर मुख्यालय से मात्र 3 किलोमीटर दूर ग्राम सनावदा का। संस्कृति की रक्षा, धर्म और शिव को लेकर बड़ी-बड़ी बातों और हकीकत में अंतर का यह मंदिर जीवंत उदाहरण है, जो हर आस्थावान के चेहरे पर तमाचा मार रहा है। ये मंदिर परमार कालीन शैली में बना हुआ है। इसके ठीक पीछे तालाब है और पूरा नजारा सुंदर हैं केवल मंदिर छोड़कर। आज भी यहां के खंब, टूटी और साबूत प्रतिमाओं से प्रतीत होता है कि यह कम से कम 13वीं सदी में बना होगा। यहां आज भी जो शिवलिंग है, वह भी उसी काल का है। गांव वालों का कहना है कि यह बहुत चमत्कारी मंदिर है और गांव के सभी लोग पूजन के लिए यहां आते हैं।

हाल ऐसे की देखकर आ जाए शर्म

जो मंदिर इतना चमत्कारी और प्राचीन है, उस मंदिर की आज की हालत देखकर ही शर्म आती है। मंदिर मात्र 7 बाय 5 का एक टूटा-फूटा कमरा जैसा बचा है, जिसमें शिवलिंग विराजित है। टूटे-फूटे खंडहर में चारों तरफ प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। इन्हीं प्रतिमाओं के सहारे से दर्जनों बकरियां बंधी रहती हैं जो मंदिर के सामने, आस पास चारों तरफ गंदा करती हैं। मंदिर के पत्थर, खंब एक दूसरे के ऊपर जैसे बस रखे हुए हैं। पास ही मंदिर की ही जमीन पर अतिक्रमण करके भैंसें, गाय बंध रहे हैं। गोबर, गंदगी भी वहीं है। केवल इतना ही नहीं दूसरी ओर से कच्ची नाली बहती है जहां कचरा, झाड़ियां अटक कर गंदे पानी को सीधे मंदिर में बहा लाती है। मंदिर बाकी जमीनी स्तर से नीचा होने के कारण बारिश में गंदे पानी से इतना पट जाता है, कि शिवलिंग तक अछूती नहीं बचती। 


एक महीने में एक अधिकारी भी नहीं झांका

जहां कथावाचक और संत भगवान शंकर की महिमा बताकर रोज एक लोटा जल चढ़ाने को कह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर स्वार्थ, उदासीनता और कहा जाए तो आडंबर की ओट में यह प्राचीन मंदिर रुदन कर रहा है। इस मंदिर की दुर्दशा गांव वालों को सालों से दिखाई देती है, लेकिन कोई आवाज़ उठाने को तैयार नहीं। गांव के किशोरों ने यह सब देखकर हिम्मत की। 13 से 19 साल की उम्र के 4-5 किशोर न केवल मंदिर की साफ, सफाई और यथासंभव रखरखाव कर रहे हैं, बल्कि आसपास के अतिक्रमण और गंदगी की शिकायत नगर पंचायत से लेकर सीएम हेल्पलाइन तक कर रहे हैं। सीएम हेल्पलाइन पर गांव के युवा कुलदीप सिंह ने एक महीने पहले शिकायत की थी। उन्होंने बताया कि एक महीने में एक बार भी कोई अधिकारी या कर्मचारी तक न तो आए, न ही किसी ने फोन पर बात तक की। 

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Thu, 16 Feb 2023 18:24:21 +0530 newsmpg
Guruvar Vrat: कब और कितने गुरुवार व्रत रखना है शुभ, जानें पूजन विधि, लाभ और महत्व https://newsmpg.com/guruvar-vrat-कब-और-कतन-गरवर-वरत-रखन-ह-शभ-जन-पजन-वध-लभ-और-महतव https://newsmpg.com/guruvar-vrat-कब-और-कतन-गरवर-वरत-रखन-ह-शभ-जन-पजन-वध-लभ-और-महतव Guruvar Vrat Lord Vishnu Puja Niyam and Significance: हिंदू पंचांग के अनुसार गुरुवार या बृहस्पतिवार का दिन श्री हरि भगवान विष्णु और बृहस्पति देव को समर्पित होता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करना शुभ माना जाता है. गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे घर पर सुख-समृद्धि और धन-संपदा बनी रहती है. वहीं इस व्रत के प्रभाव से कुंडली में गुरु ग्रह भी मजबूत होते हैं. गुरुवार का व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है.यदि कुंवारी कन्याएं इस व्रत को करती हैं तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और शादी में उत्पन्न हो रही बाधाएं भी दूर होती है.

यदि आप गुरुवार व्रत करना चाह रहे हैं तो व्रत से जुड़े नियमों को जरूर जानें. गुरुवार व्रत शुरु करने से पहले यह जान लें कि व्रत का संकल्प कितने दिनों के लिए और कब लेना चाहिए. व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए.  

16 गुरुवार व्रत होता है शुभ

गुरुवार व्रत आप 1, 3, 5, 7, एक साल, आजीवन या संकल्प के अनुसार कर सकते हैं. लेकिन 16 गुरुवार का व्रत करना शुभ माना जाता है. 16 गुरुवार व्रत के बाद इसका उद्यापन कर दें. यदि पुरुष गुरुवार व्रत करते हैं तो वे लगातार 16 गुरुवार व्रत कर सकते हैं. वहीं महिलाएं मुश्किल दिनों (माहवारी) में व्रत को छोड़ सकती हैं. शुद्ध होने के बाद अगले हफ्ते व्रत को पूरा किया जा सकता है.

कब शुरू करें गुरुवार व्रत

गुरुवार का व्रत आप किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से शुरू कर सकते हैं. वहीं अनुराधा नक्षत्र वाले गुरुवार से व्रत की शुरुआत करना शुभ माना जाता है. इससे बृहस्पति देवता की कृपा प्राप्त होती है. लेकिन पौष माह में इस व्रत की शुरुआत न करें. यदि आप पहले से व्रत कर रहे हैं तो पौष माह में व्रत और पूजन किया जा सकता है. लेकिन पौष माह से व्रत करने का संकल्प नहीं लेना चाहिए.

गुरुवार व्रत के लाभ

गुरुवार व्रत के कथा में इस व्रत के लाभ और महत्व के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार जो व्यक्ति गुरुवार के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और इस व्रत कथा को पढ़ते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस व्रत को करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर होते हैं सुखों की प्राप्ति होती है.

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

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Wed, 23 Nov 2022 16:19:47 +0530 newsmpg
Astrology: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशि के लोग कैसे होते हैं? आइए जानते हैं https://newsmpg.com/astrology-मष-वष-मथन-करक-सह-और-कनय-रश-क-लग-कस-हत-ह-आइए-जनत-ह https://newsmpg.com/astrology-मष-वष-मथन-करक-सह-और-कनय-रश-क-लग-कस-हत-ह-आइए-जनत-ह Thu, 06 Oct 2022 18:18:23 +0530 newsmpg Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि के अब कितने दिन शेष, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए इन दिनों में क्या&क्या करें, यहां जानें संपूर्ण जानकारी https://newsmpg.com/shardiya-navratri-2022-नवरतर-क-अब-कतन-दन-शष-म-दरग-क-परसनन-करन-क-लए-इन-दन-म-कय-कय-कर-यह-जन-सपरण-जनकर https://newsmpg.com/shardiya-navratri-2022-नवरतर-क-अब-कतन-दन-शष-म-दरग-क-परसनन-करन-क-लए-इन-दन-म-कय-कय-कर-यह-जन-सपरण-जनकर Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि का पावन पर्व 26 सितंबर 2022 से शुरू हुआ था. शारदीय नवरात्रि में मां की आराधना के लिए अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं. नवरात्रि का समापन 5 अक्टूबर 2022 को हो जाएगा. ऐसे में देवी को प्रसन्न करने के लिए बचे हुए दिनों में क्या-क्या करें आइए जानते हैं.

30 सितंबर 2022 - मां  स्कंदमाता (पंचमी तिथि), ललिता पंचमी व्रत

  • देवी दुर्गा के पांचवे रूप मां स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि की पंचमी को की जाती हैं. इस दिन ललिता पंचमी व्रत भी रखा जाएगा. देवी ललिता मां दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक हैं. इन्हें त्रिपुरा सुंदरी और षोडसी के नाम से भी जाना जाता है. ललिता पंचमी का व्रत रखने वालों को जीवन के तमाम कष्टों से मुक्ति मिलती है.

1 अक्टूबर 2022 - मां कात्यायनी (षष्ठी तिथि), दुर्गा पूजा

देवी कात्यायनी मां भवानी का छठा रूप हैं. सुयोग्य वर-वधु की प्राप्ति के लिए देवी कात्यायनी की पूजा जरूर करनी चाहिए. देवी कात्यायनी सच्चे मन से उपासना करने वालों की शादी में आ रही बाधाएं दूर करती हैं.

  • बंगाली समुदाय में षष्ठी तिथि से देवी की उपासना शुरू होती हैं. बंगाली मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में देवी दुर्गा अपने योगनियां और पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके आती हैं. उनके आदर-सत्कार के लिए इस समुदाय के लोग पूरे श्रद्धा भाव से मां की आराधना करते हैं और तरह-तरह के पकवान बनाते हैं.

2 अक्टूबर 2022 - मां कालरात्रि (सप्तमी तिथि)

मां दुर्गा का रौद्ररूप हैं देवी कालरात्रि. शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन इनकी उपासना सुबह के बाद रात में भी जरूर करें. देवी कालरात्रि की रात में पूजा और मंत्रों का जाप करने से समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं और शत्रु का विनाश होता है.

3 अक्टूबर 2022 - मां महागौरी (अष्टमी तिथि)

नवरात्रि के आखिरी दो दिन अष्टमी और नवमी बहुत महत्वपूर्ण माने गए हैं. अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप मां महागौरी का पूजन होता हैं. इसे महाअष्टमी और दुर्गाष्टमी भी कहते है. कई लोग इस दिन कन्या पूजन भी करते हैं.

4 अक्टूबर 2022 - मां सिद्धिदात्री (नवमी तिथि)

शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा का अंतिम दिन होता हैं नवमी. नौवें दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित हैं. इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है. साथ ही देवी के सहस्त्रनाम लेकर हवन किया जाता है.

5 अक्टूबर 2022 - दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, सिंदूर खेला, दशहरा

नौ दिन के बाद दशमी को मां दुर्गा की प्रतिमा का धूमधाम से विसर्जन किया जाता है. दसवें दिन मां अपने लोक लौट जाती हैं. बंगाली समुदाय में इस दिन सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती हैं. इसके पीछे मान्यता है कि मां दुर्गा को विदाई देते वक्त सुहागिन महिलाएं उन्हें सिंदूर अर्पित कर अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं. फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं.

नवरात्रि के नौ रंग 2022 (Navratri colours 2022)

नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के प्रिय रंगों का पूजा में उपयोग करना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है इससे देवी बहुत प्रसन्न होती हैं और उपासना का पूर्ण फल मिलता है. नवरात्रि के बचे हुए दिन में कौन सा रंग शुभ माना गया है.

  • नवरात्रि पांचवां दिन - (30 सितंबर 2022) - मां स्कंदमाता पूजा (हरा रंग)
  • नवरात्रि छठा दिन - (01 अक्टूबर 2022) - मां कात्यायनी पूजा (ग्रे रंग)
  • नवरात्रि सातवां दिन - (02 अक्टूबर 2022) - मां कालरात्री पूजा (नारंगी रंग)
  • नवरात्रि आठवां दिन - (03 अक्टूबर 2022) -  मां महागौपूजा (मोर वाला हरा रंग)
  • नवरात्रि नवां दिन - (04 अक्टूबर 2022) - मां सिद्धरात्री पूजा (गुलाबी रंग)

कन्या पूजन 2022 कब ? (Navratri 2022 Kanya puja date)

नवरात्रि के अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विधान है. इस बार महाअष्टमी तिथि 3 अक्टूबर 2022 और नवमी 4 अक्टूबर 2022 को है. इस दिन नौ कन्याओं को घर बुलाकर भोजन कराया जाता है. इन नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर इनकी पूजा की जाती है. कन्या भोजन में एक बटूक यानी कि एक बालक को भी भोजन का निमंत्रण दिया जाता है. भोजन के बाद सभी कन्याओं को यथाशक्ति कुछ उपहार देना चाहिए और पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए.

नवमी पर हवन कब- कैसे करें ? (Navratri 2022 Hawan Vidhi)

नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के समक्ष हवन करना जरूरी होता है. मान्यता है कि हवन के बाद ही साधक की नौ दिनों की पूजा पूरी होती है और साधना का पुण्य प्राप्त होता है. हवन को शुद्धिकरण की क्रिया माना गया है. ये आरोग्य प्रदान करता है. शुभ मुहूर्त में ही हवन करना चाहिए . हवन कुंड में पति-पत्नी को एक साथ बैठना चाहिए और मां दुर्गा के मंत्र ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः’ का 108 बार जाप करते हुए माता के नाम से आहुति देना चाहिए. पुजारी के कहे अनुसार भी हवन कर सकते हैं.

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Thu, 29 Sep 2022 14:18:23 +0530 newsmpg
वेदों में मां दुर्गा को क्यों बताया गया है ब्रह्म का सर्वोच्च पूर्ण पहलु  &जानिये क्या है वेदों में देवी का महत्व  https://newsmpg.com/know-Why-Mother-Durga-is-mentioned-in-the-Vedas-as-the-supreme-aspect-of-Brahma https://newsmpg.com/know-Why-Mother-Durga-is-mentioned-in-the-Vedas-as-the-supreme-aspect-of-Brahma
रिलिजन डेस्क, भोपाल

सनातन धर्म में श्रृृष्टि के पहले और ब्रह्मांड के बाद भी रहने वाले को ही ईश्वर, भगवान, शक्ति कहा गया है। नवरात्रि में इसी देवीय शक्ति की आराधना की जाती है, जिसकी न तो कोई उत्पत्ति है और न ही अंत। 
वैदिक काल से ही हिंदु धर्म से जुड़े दर्शन और शास्त्रों में देवी का महत्व प्रतिपादित है। वैदिक ग्रंथों ने दुर्गा को ही सर्वोच्च और ब्रह्म का पूर्ण पहलू माना है। देवी-अथर्वशीर्ष में भी इसे कहा गया है। पंडित विद्याशंकर जी शास्त्री बताते हैं कि देवी के प्रति श्रद्धा, भगवान की स्त्री प्रकृति, पहली बार ऋग्वेद के 10 वें महल में प्रकट होती है। इस स्तोत्र को देवी सूक्तम स्तोत्र भी कहा जाता है।

शब्द दुर्गा और संबंधित शब्द वैदिक साहित्य में दिखाई देते हैं। ऋग्वेद के भजन 4.28, 5.34, 8.27, 8.47, 8.93 और 10.127, और अथर्ववेद के खंड 10.1 और 12.4 में दुर्गा और माता के नामों का उल्लेख आता है। तैत्तिरीय आरण्यक की धारा 10.1.7 में दुर्ग नाम का एक देवता प्रकट होता है। जबकि वैदिक साहित्य दुर्गा शब्द का प्रयोग करता है, उसमें वर्णन में उसके बारे में पौराणिक विवरणों का अभाव है जो बाद के हिंदू साहित्य में पाया जाता है। 

देवी सूक्त, ऋग्वेद

मैं रानी हूँ, खजानों की संग्रहकर्ता, सबसे विचारशील, पूजा करने वालों में सबसे पहले।
     इस प्रकार देवताओं ने मुझे अनेक स्थानों पर और अनेक घरों में प्रवेश करने और निवास करने के लिए स्थापित किया है।
केवल मेरे द्वारा ही वे भोजन करते हैं जो उन्हें खिलाता है, - प्रत्येक व्यक्ति जो देखता है, सांस लेता है, मुखर शब्द सुनता है।
     वे इसे नहीं जानते, फिर भी मैं ब्रह्मांड के सार में निवास करता हूं। सुनो, एक और सब, सच जैसा कि मैं इसे घोषित करता हूं।
मैं, वास्तव में, स्वयं घोषणा करता हूं और उस शब्द का उच्चारण करता हूं जिसका देवता और मनुष्य समान रूप से स्वागत करेंगे।
     मैं जिस व्यक्ति से प्रेम करता हूँ, उसे मैं अत्यधिक पराक्रमी बनाता हूँ, उसे पोषित करता हूँ, एक ऋषि और ब्रह्म को जानने वाला बनाता हूँ।
मैं रुद्र के लिए धनुष झुकाता हूं, कि उसका तीर मारा जाए, और भक्ति से घृणा करने वाले का वध हो जाए।
     मैं लोगों के लिए युद्ध को जगाता हूं और आदेश देता हूं, मैंने पृथ्वी और स्वर्ग को बनाया और उनके आंतरिक नियंत्रक के रूप में निवास किया।
विश्व के शिखर पर मैं पिता को आकाश देता हूं: मेरा घर जल में है, समुद्र में माता के रूप में है।
     वहां से मैं सभी मौजूदा प्राणियों को उनके आंतरिक सर्वोच्च स्व के रूप में व्याप्त करता हूं, और उन्हें अपने शरीर के साथ प्रकट करता हूं।
मैंने अपनी इच्छा से, बिना किसी उच्चतर प्राणी के सभी संसारों का निर्माण किया, और उनमें व्याप्त और उनके भीतर निवास किया।
     सनातन और अनंत चेतना मैं हूं, यह मेरी महानता है जो हर चीज में निवास करती है।

- देवी सूक्त, ऋग्वेद 10.125.3 - 10.125.8..

(स्त्रोत - पौराणिक साहित्य एवं ज्ञाताओं द्वारा दी जानकारी अनुसार) 

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Wed, 28 Sep 2022 16:12:15 +0530 newsmpg
श्रावण मास और भोले की आराधना :& मनोकामना सिद्धि का काल है यह पवित्र मास  https://newsmpg.com/The-month-of-Shravan-and-the-worship-of-the-innocent:---This-holy-month-is-the-period-of-fulfillment-of-desires. https://newsmpg.com/The-month-of-Shravan-and-the-worship-of-the-innocent:---This-holy-month-is-the-period-of-fulfillment-of-desires.
धार्मिक डेस्क। सनातन धर्म में श्रावण और कार्तिक मास का महत्व अन्य 10 महीनों की तुलना में अधिक है। श्रावण मास भगवान भोलेनाथ और मां शक्ति की भक्ति का परम काल माना गया है। इस समय माता प्रकृति अपनी शक्तियों से नव जीवन का सृजन करती हैं और मेघों से आशीर्वाद के रूप में साक्षात वरुण देवता पृथ्वी पर ईश्वरीय आनंद लेकर आते हैं। 
इस मास में भोलेनाथ और माता पार्वती की भक्ति का अलग ही महत्व है। पुराणों में कहा गया है कि इस मास में शिवपार्वती, भगवान श्री गणेश, कार्तिकेय, यहां तक कि भगवान श्री हरी विष्णु, कृष्ण की उपासना का बहुत फल मिलता है। सावन का महीना मनोकामनाओं का इच्छित फल प्रदान करने वाला है। गुरु पूर्णिमा से लेकर रक्षाबंधन के पर्व तक ऐसे में पूरे देश में ही शिवालयों में तो भीड़ उमड़ती ही है, साथ ही श्रद्धालु व्रत, उपवास, पूजन, विधान से भगवान की स्तुति भी करते हैं। 

आशाओं की पूर्ति का समय है 

पंडितों और धर्मविदें के अनुसार सावन मास की महत्ता, व्रत और पूजन की विधि तथा कैसे कर सकते हैं भगवान शिव को प्रसन्न इसके लिए पुराणों में कई बातें बताई गई हैं। पंडित संजय शिवशंकर दवे बताते हैं कि कहा जाता है कि यह माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है। सावन अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना है, जो ईस्वीं कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख हैं। इस माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी लड़कियां भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं। पुराणों में इसे भगवान शिव के पूजन का अवसर बताया गया है। 

ऐसे करे भोले बाबा का पूजन 

पुजारियों के अनुसार गृहस्थों के लिए शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। भगवान शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग भांग घोंटकर भी चढ़ाते हैं। शिवजी की पूजा में लगने वाली सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल-गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप से पूरी श्रद्धा के साथ अर्पित करते हुए पूजन करनी चाहिए। मन में यह भाव होना चाहिए ये सभी वस्तुएं शिव और परिवार को अर्पित कर रहे हैं। 

सोमवार को पूजन का है विशेष महत्व 
प्रत्येक सोमवार को गणेशजी, शिवजी, पार्वतीजी की पूजा की जाती है। इस सोमवार व्रत से पुत्रहीन पुत्रवान और निर्धन धर्मवान होते हैं। स्त्री अगर यह व्रत करती है, तो उसके पति की शिवजी रक्षा करते हैं। सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं है, किंतु आवश्यक है कि दिन-रात में केवल एक ही समय भोजन करें। सोमवार के व्रत में शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए।

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Mon, 25 Jul 2022 18:21:58 +0530 newsmpg