कहीं खंबे करते हैं पाप-पुण्य का हिसाब, कहीं शिवलिंग के नीचे छुपी है शिवलिंग - जानिये रहस्यों से भरे रतलाम जिले के अतिप्राचीन शिवधाम
पौराणिक काल से धार्मिक आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण और साधनाओं का केंद्र रहीं उज्जैन और भानपुरा, राजस्थान के बीच स्थित होने से रतलाम में सदियों पुराने, दिव्य और चमत्कारों से भरे कई शिवधाम हैं
धार्मिक डेस्क @newsmpg. भगवान महादेव के दिव्य और चमत्कारी धाम वैसे तो भारत के घट-घट में विराजित हैं, लेकिन भगवान भोलेनाथ के धामों से रतलाम की धरा बहुत विभूषित है। उज्जैन और भानपुरा, राजस्थान के बीच स्थित होने से रतलाम में सदियों पुराने, दिव्य और चमत्कारों से भरे कई शिवधाम हैं। इनमें से कुछ तो लोग आस्था का बड़ा केंद्र बन गए हैं, जबकि कुछ अब भी एकांत में तप का केंद्र हैं।
1 हजार साल से रहस्य समेटे हैं महाकाल
रतलाम के करीब ग्राम धराड़ है जहां से गुजरती है कर्क रेखा। इसी गांव में हैं 11वीं सदी में बना महाकालेश्वर मंदिर जो ठीक रेखा पर स्थित है। तीन मंजिला मंदिर का निर्माण परमार राजाओं ने लगभग 10वीं या 11वीं सदी में करवाया था। चमत्कारी होने के साथ मंदिर रहस्यमयी भी है। इसमें जमीनी तल पर महाकाल की लगभग डेढ़ हजार साल पुरानी शिवलिंग है। जबकि जमीन से नीचे भी हैं, जिसमें पंचमुखी महादेव ऊपर वाली शिवलिंग के नीचे न जाने कब से विराजित हैं। सबसे ऊपरी तल पर साधना कक्ष है जहां प्राचीन काल में संत आकर तपस्या करते थे।
इस मंदिर का महत्व इतना है कि1982 में पुरातत्व विभाग ने मंदिर का अधिग्रहण कर लिया। माना जाता है कि रतलाम के संस्थापक महाराजा रतनसिंह धराड़ आए थे और यहीं पूजन करके रतलाम बसाया था। संत सुंदर गिरी जी महाराज 1950 में धराड़ पहुंचे थे। तब उन्होंने शिव मंदिर में जाने की इच्छा प्रकट की थी। जब वे मंदिर पहुंचे तो दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया था जब तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं होगा तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। इसे पहले फूटला मंदिर के नाम से जाना जाता था।
भूल भुलैया वाले विश्व प्रसिद्ध विरुपाक्ष
बिलपांक गांव में स्थित भूल-भूलैया वाला विरुपाक्ष महादेव विश्व प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर है। महाशिवरात्रि पर्व पर 48 सालों से महारुद्र यज्ञ हो रहा है। मान्यता है कि पूणार्हुति के दिन यहां नि:संतान महिलाएं खीर का प्रसाद ग्रहण करती हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर भी परमार कालीन और लगभग 11वी सदी में निर्मित होकर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां 64 खंबे मंदिर में हैं, लेकिन मान्यता है कि कभी भी कोई भी व्यक्ति इनकी गिनती नहीं लगा सकता। इस दिव्य मंदिर में भी हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है।
खंबे करते हैं पाप और पुण्य का हिसाब
गुणावाद गांव में यहां श्रद्धालुओं को पाप पुण्य की जानकारी भी मिलती है। मलेनी नदी किनारे एक पहाड़ी पर विराजित यह मंदिर भी सदियों पुराना है। मान्यता है कि उड़कर आया है। प्रचीन मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश से ठीक पहले दांयी व बाईं ओर 2 -2 स्तंभ के जोड़े है। दांयी ओर 2 स्तम्भ के बीच से यदि कोई निकल जाता है तो माना जाता है उस इंसान ने जीवन में पुण्य कार्य किये हैं। जो व्यक्ति बाई ओर बने 2 स्तम्भ के बीच से निकल जाता है, उसे पाप से मुक्ति मिल जाती है। इन्हें पाप और पुण्य के स्तम्भ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि मंदिर के पास खुदाई में प्राचीन प्रतिमाएं भी मिली हैं। इसमें सास बहू के साथ के छाछ मथने की तस्वीर पत्थर पर गड़ी है। श्रद्धालु यहां बड़ी आस्था के साथ आते हैं और अपनी मनोकामना का आशीर्वाद लेते हैं।
अनादि काल से विराजित हैं अनादि कल्पेश्वर
जिले आलोट में अनादि कल्पेश्वर महादेव भी विराजित हैं, जो चमत्कारों का केंद्र है। उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर यहां भी शाही सवारी निकलती है। भगवान अनादि कल्पेश्वर का पुराना मंदिर 1200 साल से भी ज्यादा प्राचीन है। यह मंदिर भी हजारों की आस्था का केंद्र होने के साथ चमत्कारी है। मंदिर के समीप कुंड और गोमुखी हैं, जहां प्राचीन समय में लोग स्नान करके पाप धोने आते थे। मंदिर की बनावट और शिल्पकला भी खास है।
शिप्रा-चंबल के संगम पर है पुलत्स्य ऋषि की तपोभूमि
सिंहस्थ में सर्व पाप मोचनी शिप्रा और महाशक्तिशाली चंबल नदी का संगम स्थल रतलाम जिले के आलोट के पास है। यहीं टापू पर है लगभग डेढ हजार से भी ज्यादा पुराना शिपावरा धाम। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित होने के अलावा इस मंदिर के इतिहास में छुपे रहस्यों पर विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा शोध भी किया जा चुका है। यह मंदिर पुलत्स ऋषी की तपोस्थली मानी जाती है। मंदिर इतना प्राचीन है और यहां जमीन के नीचे से अति प्रचाीन दीपक भी मिले हैं। कहा जाता है कि जब मोहिनी रूप भगवान विष्णु ने रखा था, तब भगवान भोलेनाथ इसी स्थान पर राक्षस से बचने के लिए छुपे थे। रहस्यों और इतिहास के हजारों पक्ष समेटे यह मंदिर मप्र ही नहीं राजस्थान से आने वाले हजारों श्रद्धांलुओं की आस्था का केंद्र है।
जहां एकसाथ होते हैं 68 शिवों के दर्शन
शहर के बीच दण्डिस्वामी संतो के मठ में प्राचीन शिव मंदिर है, जिसमें शिव पार्वती की प्रतिमा के साथ 68 शिवलिंग हैं। सालो से यहां कोई न कोई दण्डिस्वामी रहते आये हैं। वहीं पुराने समय में दण्डिस्वामी संतो की मृत्यु पश्चात इसी परिसर में उनकी समाधि भी बनाई गई थी। सारे शिवलिंग की एकसाथ पूजा के कारण इस मंदिर पर शिव भक्तों का खास आकर्षण रहता है।
पांडव काल से विराजित महादेव
रतलाम जिल की पिपलौदा तहसील के ग्राम आम्बा के समीप ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र है, जो हर दृष्टि से रमणीय केंद्र है। मंदिर धरती से नीचे, झरने के पीछे जंगल के बीचों, बीच गुफा में स्थित है। यहां इतनी बड़ा गुफा आज भी विद्यमान हैं जहां 50-100 लोग बैठकर तपस्या कर सकते हैं। झरने से और नीचे बहते पानी के तल पर पहाड़ियों पर विशाल आदि कालीन आकृतियां भी विद्यमान हैं जो कब बनी किसी को पता नहीं। कहा जाता है कि यह आकृतियां महाभारत कालीना हैं, हालांकि इसका ठोस प्रमाण नहीं है लेकिन भक्तों की आस्था अटूट है।
रतलाम के राजा भगवान गढ़कैलाश
रतलाम के राजा भगवान गढ़कैलाश का मंदिर भी अमृतसागर तालाब के किनारे विराजित है। यह मंदिर भी करीब 600 साल पुराना है और रतलाम की स्थापना का परिचायक भी। भगवान गढ़कैलाश के मंदिर की विशेषता है कि शिवलिंग के स्थान पर शिव परिवार और भोलेनाथ की बैठी हुई भव्य प्रतिमा है।