अ से जगी ऐसी अलख की बन गया रिकार्ड -आदिवासी अंचल झाबुआ में 9 महीने में 90 हजार ने थामी कलम
जो हाथ कल तक सिर्फ तगारी, फावड़ा उठाते थे, उन्होंने जब कलम थामी तो इतिहास बना दिया। आदिवासी अंचल झाबुआ में पिछले अगस्त में अ से अक्षर अभियान प्रारंभ किया गया।
अदिति मिश्रा, रतलाम/झाबुआ।
जो हाथ कल तक सिर्फ तगारी, फावड़ा उठाते थे, उन्होंने जब कलम थामी तो इतिहास बना दिया। आदिवासी अंचल झाबुआ में पिछले अगस्त में अ से अक्षर अभियान प्रारंभ किया गया। कलेक्टर की पहल और अमले की मेहनत से इस मई के अंत में झाबुआ ने रिकार्ड कायम करते हुए 90 हजार प्रौढ़ों को परीक्षा दिलवाई है। यह अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा हैं। मात्र 9 महीने में लगभग 55 हजार महिलाओं ने इस परीक्षा में भाग लेकर अपना जीवन बदला है।
नवाचारों के लिए जाने जाने वाले झाबुआ कलेक्टर सोमेश मिश्रा ने नवाचार करते हुए शिक्षा के मामले में बहुत अधिक पिछड़े अपने जिले में सुधार लाने के लिए अभियान की शुरुआत की थी। 15 अगस्त को इसका शुभारंभ स्कूली शिक्षा मंत्री ने किया था। बजट की कमी के चलते कलेक्टर ने खाली पड़े स्कूल, पंचायत भवन, आंगनवाड़ी केंद्रों, गांव की चौपालों को गुरुकुल बनवाया। यहां शासकीय अमले के साथ वोलेंटियर और अधिकारी तक शिक्षक बनकर असाक्षर लोगों को अक्षरों से परीचित करवाने लगे। तख्तियों और सीमित साधनों में रोचक तरीकों से लोगों को जोड़ने का क्रम चलता रहा। इसता प्रतिसाद यह रहा है कि 18 से 72 साल की उम्र तक की करीब 55 हजार महिलाएं और इसी आयु वर्ग के करीब 35 हजार पुरुषों ने जीवन में पहली बार कलम थामी। वो भी बच्चों, नाती-पोतों के साथ। मजदूरी से लौटकर बिना थके, इन्होंने सीखने की चुनौती स्वीकारी और सिखाने वालों ने ज्ञान देने की।
57 हजार ए ग्रेड में हुए पास
अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका कलेक्टर के निर्देश पर यहां के शासकीय और अशासकीय अमले ने निभाई। प्रौढ़ शिक्षा के नोडल अधिकारी जगदीश सिसोदिया ने बताया कि अभियान के पहले फेस में ही करीब 17 हजार लोगों ने मात्र तीन महीने में परीक्षा दी थी। दूसरे चरण में 73 हजार लोगों ने मई में परीक्षा दी। इनमें से 57 हजार लोगों ने साक्षरता की परीक्षा ए ग्रेड के साथ पास की है। जबकि करीब 14 हजार ने बी ग्रेड के साथ। अभियान में ब्लॉक राणापुर में सौरभ पोरवाल, झाबुआ में प्रकाश पालीवाल, रामा में बीएल बामनिया, थांदला में अनिल शर्मा, मेघनगर में श्री खदेड़ा और रुपेंद्र सिंह राठौर और पेटलावद में एस एस सोलंकी के साथ करीब 500 से ज्यादा वोलेंटियर ने शिक्षा देने का काम किया।
छोटी सी बात, लेकिन बदल गया जीवन
कलेक्टर सोमेश मिश्रा ने बताया कि असाक्षर होने से महिलाओं को ठगी का शिकार बना लिया गया था। यहीं से उन्होंने प्रेरणा ली और अ से अक्षर अभियान शुरु हुआ। इसका उद्देश्य 18 साल के ऊपर के प्रौढ़ असाक्षर लोगों को साक्षर बनाना है। ताकि ये लोग अफवाह, फर्जी रूप से अंगूठा लगवाकर धोखाधड़ी, साइबर क्राइम से सावधान रह सकें। आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्ग से अच्छा प्रतिसाद मिला और लोगों ने भी सीखने का हौंसला दिखाया। अभियान के तहत पढ़ना, लिखना, नंबर की पहचान, राशन दुकान पर मिलने वाली सामग्री की पहचान, बैकिंग प्रक्रिया को समझना, जमीन से जुड़े जरूरी दस्तावेज पढ़ना लोगों ने सीखा है। छोटी सी बात है, लेकिन इससे कई लोगों के जीवन में बदलाव आया है।
What's Your Reaction?