महिलाओं को पीरियड फ्रैंडली वातवारण देगा ''महिमा'' -झाबुआ जिले में पॉयलेट प्रोजेक्ट के तहत शुरु होगा अभियान 

प्रदेश के आदिवासी बहुल्य जिले में आज से ऐसा अभियान प्रारंभ हो रहा है जिससे आने वाली पीढ़ियों में बड़ा बदलाव होगा।

Jun 1, 2022 - 19:27
Nov 15, 2024 - 16:28
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महिलाओं को पीरियड फ्रैंडली वातवारण देगा ''महिमा'' -झाबुआ जिले में पॉयलेट प्रोजेक्ट के तहत शुरु होगा अभियान 


रतलाम/झाबुआ। प्रदेश के आदिवासी बहुल्य जिले में आज से ऐसा अभियान प्रारंभ हो रहा है जिससे आने वाली पीढ़ियों में बड़ा बदलाव होगा। झाबुआ जिले में नवाचार करते हुए शत-प्रतिशत महिलाओं को पीरियड फ्रेंडली वातावरण देने और सेनेटरी पेड उपयोग के लिए प्रेरित किया जाएगा। अभियान सफल हुआ तो रतलाम सहित पूरे प्रदेश में लागू हो सकता है। 
28 मई को विश्व माहवारी (मेंस्ट्रुएशन) जागरुकता दिवस के साथ 'महिमा' अभियान की शुरुआत होगी। यूनीसेफ की पहल पर कलेक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा पॉयलेट प्रोजेक्ट में थांदला और पेटलावद ब्लॉक से शुरुआत होगी, जिसे आगे पूरे जिले में लागू किया जाएगा। जिला प्रशासन, यूनीसेफ और एलआईसी के मदद से प्रारंभ में 50 हजार सेनेटरी पेड निशुल्क बांटे जाएंगे। समारोह में स्कूली बच्चियों और एनएसएस, एनसीसी की वॉलेंटियर की मौजूदगी में विशेषज्ञों द्वारा समझाइश भी दी जाएगी। अभियान का उद्देश्य पीरियड के दौरान स्वस्थ, स्वस्च्छ माहौल हर एक महिला को देना है। इसे रोजगार से भी जोड़ा जा रहा है। थांदला में सेनेटरी पेड बनाने के लिए आजीविका मिशन के तहत महिला समूह का प्लांट भी शुरु किया गया है। पेटलावद में भी दूसरा प्लांट जल्द शुरु होगा। 

एक साल तक इस तरह चलेगा अभियान 

यूनीसेफ के कोओर्डिनेटर साश्वत नायर बताते हैं कि एक साल तक अभियान के तहत एक्शन प्लॉन के साथ काम होगा। पीरियड शाला भी लगाई जाएंगी, जिसमें महिलाओं को समझाया जाएगा। इसके लिए कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन जो गांव स्तर पर काम करते हैं से लेकर जिला प्रशासन के उच्च अधिकारी तक प्रेरित करेंगे। मास्र ट्रेनर को लगातार प्रशिक्षित भी किया जाएगा। लगभग 600 वॉलेंटियर मिलकर करीब 5 लाख महिलाओं तक पंहुचेंगे और सतत रूप से प्रेरित करेंगे। दोनों ब्लॉक के चिन्हित स्थानों पर 150 हेंड वॉशिंग मशीन, 15 सेनेटरी पेड वेंडिंग मशीन भी लगाई जा रही हैं। 

बहुत बुरी है मप्र में मेंस्ट्रुएशन हाईजीन की स्थिति 

मध्यप्रदेश देश में तीसरा सबसे पिछड़ा राज्य है, सिर्फ 60 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पेड का इस्तेमाल कर पाती हैं। बिहार और ओड़ीसा के बाद सबसे कम है। शहरी क्षेत्रों में 74 प्रतिशत जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 15 प्रतिशत। यूनीसेफ के अनुसार मप्र में हर साल 26 प्रतिशत महिलाओं को माहवारी संबंधी गंभीर समस्या होती है, लगभग 12 से 13 प्रतिशत की जीवन को खतरा हो जाता है। 78 प्रतिशत महिलाओं को अन्य स्वास्थ दिक्कत और एनीमिया होता है। राष्ट्रीय स्वास्थ मिशन सर्वे अनुसार 48 प्रतिशत किशोरियां माहवारी प्रारंभ होते ही स्कूल छोड़ देती है। इतनी बड़ी संख्या में प्रभावित होने और इतनी बड़ी समस्या के बावजूद माहवारी को लेकर आज भी खुलकर बात नहीं होना भी अपने आप में सवाल है। 

अभियान सफल हुआ तो बदलेगा जीवन

चिकित्सकों का मानना है कि झाबुआ में अभियान सफल हुआ तो किशोरियों और महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। न केवल बीमारियों और संक्रमण की दर कम होगी, मातृ मृत्यु दर भी कम हो सकता है। आने वाले समय में महिलाओं के जीवन में उन दिनों में होने वाली दिक्कतों को लेकर परिवार में समझ बढ़ने पर महिलाओं के जीवन में व्यापक सुधार आएगा। 
चुनौती बड़ी है, लेकिन हम हर संभव प्रयास करेंगे... 
नवाचार के तहत अभियान को हम जिले में यूनीसेफ की मदद से प्रारंभ कर रहे हैं। आदिवासी परिवारों को प्रेरित करना, समझाना बड़ी चुनौती है, लेकिन अगर लगातार ईमानदार प्रयास किए जाएं, तो निश्चित सफलता मिलेगी। इसके लिए अधिकारियों, कर्मचारियों, समाजसेवियों की मदद भी ली जाएगी। कोशिश रहेगी कि महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकें। 
-सोमेश मिश्रा, कलेक्टर झाबुआ । 

महिमा के सामने हैं ये बड़ी चुनौती

  • गांव में बहुत कम आदिवासी महिलाएं अतंरवस्त्र (अंडरवियर) उपयोग करती हैं। उन्हें सेनेटरी पेड इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना होगा। 
  • आदिवासी समाज में टोने-टोटके और जादू जैसी भ्रांतियां अधिक होती है, जिससे महिलाएं माहवारी से संबंधित बात नहीं करती।
  • माहवारी के दिनों में महिलाओं को बिना बिस्तर के सुलाने, भोजन, पानी आदि नहीं छूने सहित कई भ्रांति हैं, जिन्हें दूर करने के लिए परिवार को समझाना होगा।
  • गरीबी और अशिक्षा के कारण परिवारों में माहवारी को लेकर बात करना सहज नहीं होता, ऐसे में शासकीय अमले के लिए बात करना भी आसान नहीं होगा।
  • मजदूरी के लिए परिवार अक्सर गुजरात या अन्य जिलों में जाते रहते हैं, ऐसे में परिवार की महिलाओं से लगातार संपर्क मुश्किल होगा। 

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