इस बार पड़ेगी ऐसी गर्मी जो सहना होगा बेहद मुश्किल -दो दशकों के मुकाबले भारत का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा -4-5 सालों में 50 पार पंहुच जाएगा पारा
This time there will be such heat which will be very difficult to bear in India. india's average temperature is rising faster than in two decades - Mercury will cross 50 in 4-5 years heat may cause severe problems
अर्थ वॉरियर डेस्क, न्यूजएमपीजी। अगर आपसे कहा जाए कि मात्र 4-5 सालों में आपके लिए गर्मियों के मौसम में घर से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाएगा, तो शायद आपको कम विश्वास होगा, लेकिन यह एकदम सच है। इस साल भी केवल 10 दिनों बाद ऐसी स्थिति हो जाएगी कि अप्रैल, मई में घरों के बाहर समय काटना बड़ी सजा होगी। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और लगातार घट रही वन संपदा के कारण मात्र 5 सालों में भारत का औसत तापमान इतना हो सकता है जो इन्सान के लिए सहनशक्ति के लिए मुश्किल हो।
ये खौफनाक और चिंताजनक चेतावनी विश्व की सभी बड़ी एनवायरमेंट से जुड़ी संस्थाएं कर रही हैं। तथ्यों की बात करते हैं। इसके लिए आपको दो दशक पहले 1990 से 2000 के बीच के समय में लेकर चलते हैं। अप्रैल-मई का महीना 90 के दशक में कैसे हुआ करता था? शायद ही छोटे शहरो ंमें किसी घर में कोई न कोई छत पर, आंगन में, बाहर न सोता हो, बिना किसी पंखे, कूलर के। एसी तो सवाल ही नहीं है। दिन बागीचों में बीत जाता था, शाम चौपालों पर। आंकड़े बताते हैं कि 1990 के दशक में साल का औसत तापमान 26.9 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था। आज महानगरों में अप्रैल में दिन का तापमान 40 के पार है। दो दशक में 10-14 डिग्री तक तापमान बढ़ा है। अगर यही रफ्तार जारी रहा तो अगले दो दशक में यानी कि साल 2045-50 तक तापमान 50 डिग्री के पार चला जाएगा।
क्यो होगा हमारे साथ, अगर तापमान हुआ 50
शोध बताते हैं कि इन्सानी शरीर का औसत सामान्य तापमान 36-37 डिग्री सेल्सियस है। यहीं तक का तापमान इन्सान के लिए बेहतर है। इससे ऊपर हर एक डिग्री हमारे लिए हानीकारक है। 40 के ऊपर तेज बुखार, डिहाईड्रेशन, मिनिरल्स की कमी, त्वचा रोग, श्वसन रोग होने लगते हैं। 42 के ऊपर दिमाग, दिल, यकृत, किडनी शिथिल होने लगती है। अगर यह तापमान 50 तक पहुंचा तो क्या स्थिति होगी? सोचा जा सकता है।
साल दर साल बिगड़ते हालात
विश्व भर के साथ भारत में किए जा रहे शोध बताते हैं कि भारत में तापमान साल दर साल तेजी से बढ़ रहा है। 28 अप्रैल तक के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़े भी चेताने वाले हैं। 122 वर्षों में पिछले साल अप्रैल का महीना सबसे गर्म रहा है। लंबे समय तक भारत के उत्तरी हिस्सों में औसत अधिकतम तापमान 35.9 डिग्री सेल्सियस रहा है। यह पुराने औसत से 3 डिग्री अधिक है। पिछले साल के सेटेलाइट इमेजस के अनुसार उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में सतही भूमि का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया था।
क्यों आग का गोला बनने को दौड़ रहे हैं हम
प्रकृति का विनाश, अत्याधिक कार्बन डाइआॅक्साइड और हानिकारक गैसों का उत्सर्जन। बस यही दो कारण हैं जिनकी वजह से भारत सहित पूरा विश्व तेजी से आग का गोला बनने की ओर भाग रहा है। उद्योग, इमारतों के निर्माण के चलते बड़ी संख्या में जंगलों को खत्म किया गया। 2019 के आंकड़े बताते हैं कि वनों की कटाई के कारण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई से कार्बन उत्सर्जन तेज हो रहा है।
ग्रीन हाउस गैस थर्मल इंफ्रारेड रेंज के भीतर ऊर्जा को अवशोषित और उत्सर्जित करती हैं। मोटे तौर पर समझें तो ये पृथ्वी पर ऊष्मा को बढ़ाने वाले कारक हैं। चूंकि पेड़ों की हो रही कटाई के कारण स्वाभाविक रूप से आॅक्सीजन का उत्पादन कम और कार्बन डाइआक्साइड बढ़ने लगता है। कार्बन डाइआॅक्साइड धरती के वायुमंडल को गर्म करनेवाली ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी करने लगता है। कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ना तापमान को बढ़ाने लगता है। आंकड़े हमारे कारनामों को स्पष्ट करते हैं। चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है।
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