आॅल हीरो डोंट हेव मुस्टैचेस.. मजबूत हीरोज़ के साथ बदल रहा है सिनेमा का चेहरा
Bollywood and O.T.T. platforms are changing with emerging females as Hero. From Mother India and Bandini to Lapta Ladies and Jigra the flambe is burning bright.
बॉलीवुड डेस्क @newsmpg। हीरो...शब्द सुनते ही बॉलीवुड के सुंदर चेहरे, गठीली शरीर और परलौकिक शक्ति समाए युवक जहन में आता है। बेहद गरीब परिवार या मिडिल क्लास या कई बार तो अनाथ जिसे बचपन को छोड़कर कभी फाइनेंशियली या सोशली कोई प्रॉब्लम नहीं आ सकती। से महामानव, अति संवेदनशील, अति अच्छे होते हैं।
लेकिन लैंडलाइन और मोबाइल से लेकर स्मार्ट फोन तक पंहुच चुके समाज में इन दिनों बॉलीवुड के कुछ क्रांतिकारी लोग अपने हीरो को भी बदल रहे हैं। इसी रिस्क की बदौलत पिछले साल और इस साल ओटीटी और मैन स्ट्रीम में पॉवरफुल फीमेल हीरो के साथ कुछ दमदार प्लोट और कहानियां देखने को मिल रही हैं।
धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा में वो दौर भाषाई फिल्मों तक सीमित हो रहा है जहां हीरो की वीरता दिखाने के लिए या तो उसकी मां, बहन या हीरोइन को गुंडे को उठाकर ले जाना पड़ता था और हीरो उनका बदला लेता था। खतरे में फंसी राजकुमारी को बचाने के लिए प्रिंस चार्मिंग अब उतने जरूरी नहीं रहे हैं जितना की असली आफतों, रोज की तकरारों में समाने वाले साथी। अब वो हीरो ताकतवर है जो फीलिंग्स से लेकर घर के काम और समाज के प्रेशर में अपनी सशक्त भूमिका निभाते हैं। वो आदमी, औरत से परे इंसानों की तरह व्यवहार करते हैं। वे समान रूप से भावुक या दुखी होने पर रोते हैं, दूसरों की फिक्र में सिर्फ करते नहीं जताते हैं। कमजोर लेकिन मजबूत, भावनात्मक लेकिन बुद्धिमान, प्यार करने के साथ केयर की चाहत रखने वाले जटिल से आम लोग अब प्रभावी केरेक्टर बन रहे हैं।
मदर इंडिया, बंदिनी ने सुलगाए रखी चिंगारी
हॉलीवुड या बॉलीवुड की आर्ट मूवीज़ में पहले भी दशक में एकाध बार नायिका प्रधान कहानियां पेश की गई हैं जिन्होंने तब भी कमाल किया है। इसमें मेहबूब खान की मदर इंडिया, बिमल रॉय की बंदिनी, राजकुमार संतोषी की लज्जा और दामिनी, महेश भट्ट की अर्थ, केतन मेहता की मिर्च मसाला, मधुर भंडारकर की चांदनी बार, शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन, राकेश रोशन की खून भरी मांग, श्याम बेनेगल की भूमिका, विशाल भारद्दाज की 7 खून माफ और महेश मांजरेकर की अस्तित्व जैसी फिल्में शुमार हैं।
पर्दानशीं और चूल्हे को तीर्थ मानने वाले दौर में बंदूक या लट्ठ उठाती, पुरुषों से जुबान लड़ाती ये नायिकाएं तब भी समय की क्रूर ठोकरों और जज्बातों की उधेड़बुन के बीच ऐसी गढ़ी गईं थीं जो पुरुष सत्ता को एकमेव सत्य मानने वालों के मन में भी कौंध जरूर गईं। महिलाओं और खासकर तब की किशोरियों के मन में ये नायिकाएं एक कोने में बैठ शोले सुलगाती रहीं।
ओब्जेक्ट से सब्जेक्ट
21वीं सदी में टेक्नोलॉजी के साथ जो सबसे बड़ा दूसरा आविष्कार हुआ वो माता, पिताओं में अपने बच्चों के नयेपन और जिद को सहजता से स्वीकार करने की ताकत ही है। बॉलीवुड में कभी केवल हीरो को प्रेम, सत्य, समर्पण, साहस से सेक्स तक का अर्थ बताते मात्र के लिए जीवित रहने से लेकर आज की फिल्मों और सीरीज़ में फीमेल का अपना वजूद, अपनी सोच, अपनी प्रभावी मौजूदगी तक दर्ज करवा रही हैं।
कहानी और कहानी- 2, क्वीन, राजी, गंगुबाई काठियावाड़ी, चांदनी बार, चमेली, जिगरा, घूमर, लापता लेडीज जैैसी फिल्म और वेब सीरीज़ की बाढ़ बता रही है कि दर्शकों में अपना टिकट खुद खरीदने की ताकत महिलाओं के हाथ में आते ही वे क्या देखना चाहती हंै, उसकी ताकत भी उनके पास आ गई है।
ये तो ठीक नवदीप सिंह ने एनएच-10 में, गौरी शिंदे की इंग्लिश-विंग्लिश, नागेश कुकनूर की डोर, प्रदीप सरकार की मर्दानी, अनुभव सिंहा की थप्पड़, मनीष ाा की मातृभूमि, विशाल फुरिया की छोरी, अलंकृति श्रीवास्तव की लिपस्टिक अंडर माय बुर्खा जैसी फिल्में समाज की दोहरी मानसिकता, रीतियों के नाम पर क्रूरता को खुलकर उजागर किया जिसे दर्शकों ने सराहा। ये बताती हैं कि आज का यूथ मैच्योर हो रहा है। वो गलतियों को स्वीकारकर बदलने और आगे बढ़ने को भी तैयार है।
-अदिति मिश्र
(पत्रकार, लेखक)
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