रतलाम के बजरंगी भाईजान... पूर्वोत्तर से गुम हुए मूक-बधिर, अनपढ़ बच्चे को महीनों की मशक्कत के बाद पंहुचाया घर
न रास्ता पूछ सका, न मांग सका मदद और फिल्म की तरह चला घर का पता
रतलाम। कभी-कभी जिंदगी की सच्ची घटनाएं फिल्मों जैसी होती है। रतलाम में बजरंगी भाईजान जैसी कहानी हुई है जिसमें बाल कल्याण समिति और पुलिस की सूझबूझ और अथक प्रयासों से महीनों की जद्दोजहद के बाद एक मूक-बधिर बालक को उसके परिवार से मिलाया गया है।
असम राज्य के गुवाहाटी के पास बेराकुची गांव के बाहरी हिस्से का रहने वाला यह 15-16 वर्षीय बालक जन्म से मूक-बधिर है। उसका परिवार बेहद गरीब है। पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और दो बहनें भी हैं। गरीबी और संसाधनहीनता के कारण बालक न तो पढ़ालिखा है न ही कभी अपने जिले से बाहर निकला। छोटी मोटी मजदूरी पिता के साथ ही करता है। इसी बीच कुछ समय पहले पिता की डांट से आहत होकर बालक घर छोड़कर निकल पड़ा। पहले तो वह पैदल ही काफी दूर निकल गया। फिर जैसे-तैसे वह गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां खड़ी एक ट्रेन में चढ़ बैठा और अनजाने में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर रतलाम आ पहुंचा।
न रास्ता पूछ सका, न मांग सका मदद
घर से निकले बालक के पास एक भी रुपये नहीं थे इसलिए वह न खा नहीं सका। बोलने और सुनने में असमर्थ होने के कारण न किसी से मदद मांग सका, न ही अपनी बात कह सका। पढ़ा लिखा न होने से स्टेशन और रास्तों के नाम तक न पढ़ पाया। थका-हारा और भूखा रतलाम स्टेशन पर उतर गया। उसे रोता और बेहाल देखकर रेलवे पुलिस ने उसे बैठाया और बात करने की कोशिश की, लेकिन नहीं उन्हें उसकी असमर्थता का पता चला।
हो उठे द्रवित
रेलवे पुलिस की सतर्कता से बाल कल्याण समिति को सूचना दी गई। बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने न केवल उसे भोजन और सुरक्षित आश्रय दिया, बल्कि तुरंत चिकित्सकीय जांच कराई और उसकी काउंसलिंग का सिलसिला शुरू किया। बालक की हालत देख सभी का दिल द्रवित हो उठा। समिति सदस्य ममता भंडारी, वैदेही कोठारी और अन्य समाजसेवियों ने उसे अपने बेटे जैसा स्नेह दिया।
और फिल्म की तरह चला घर का पता
सबसे बड़ी चुनौती थी—बालक का घर ढूंढना। न उसके पास कोई कागज, न कोई पहचान पत्र। न बोल सकता था, न इशारे स्पष्ट पर समिति ने हार नहीं मानी। कई दिन बीतने के बाद एक दिन बालक ने बाल आश्रम में एक अटेंडर के मोबाइल पर पूर्वोत्तर भारत से जुड़ी कोई रील देखी और उसे देखते ही चेहरे पर चमक आ गई। उसने इशारा से बताया कि उसका घर वहां है। इसके बाद टीम ने समाजसेवियों और पुलिस की मदद से पूर्वोत्तर राज्यों से लापता मूक-बधिर बच्चों की जानकारी निकाली। काफी प्रयासों के बाद उसके चचेरे भाई का फोन नंबर मिला। भाई से बात हुई तो पता चला कि परिवार बेहद गरीब है और वे रतलाम तक आ पाने में असमर्थ हैं।
निभाई परिवार जैसी भूमिका
यह सुनकर रतलाम पुलिस और बाल कल्याण समिति ने खुद उसे उसके गांव पहुंचाने का बीड़ा उठाया। विशेष विंग के अधिकारियों ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कीं और उसे लेकर असम रवाना हुए। सैकड़ों किलोमीटर का यह सफर तय करके आखिरकार बालक को उसके माता-पिता से मिलवाया गया। महीनों की दूरी और तड़प ने उस मिलन को और भावुक बना दिया। माता-पिता, बहनें उसे देखकर फूट-फूट कर रो पड़े और पूरे रतलाम का बार बार आभार जताया।