एक नेता जिसने ठुकराया मंत्री पद और बदले में मांगा एक सरोवर, विधायक रहते करते रहे बस से सफर, जानिए , इंदौर के प्रसिद्ध कॉलेज के प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर आदिवासियों की भलाई के लिए राजनीति में आए शख्स की कहानी

सैलाना विधानसभा के गांधी कहलाए जाने वाले स्वर्गीय प्रभुदयाल गेहलोत की पुण्यतिथि आज श्रद्धा और भावनाओं के साथ मनाई जा रही है। भग्गासेलोद के छोटे से आदिवासी गांव के टापरे से निकलकर 1960-65 में उच्च शिक्षा अर्जित करने वाले गेहलोत जी ने समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर, बीएड, एलएलबी की उपाधियां हासिल कर इंदौर के प्रसिद्ध कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में विद्वत्तापूर्ण सेवाएं दीं

एक नेता जिसने ठुकराया मंत्री पद और बदले में मांगा एक सरोवर, विधायक रहते करते रहे बस से सफर,  जानिए , इंदौर के प्रसिद्ध कॉलेज के प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर आदिवासियों की भलाई के लिए राजनीति में आए शख्स की कहानी
रतलाम।@newsmpg सैलाना विधानसभा के गांधी कहलाए जाने वाले स्वर्गीय प्रभुदयाल गेहलोत की पुण्यतिथि आज श्रद्धा और भावनाओं के साथ मनाई जा रही है।
भग्गासेलोद के छोटे से आदिवासी गांव के टापरे से निकलकर 1960-65 में उच्च शिक्षा अर्जित करने वाले गेहलोत जी ने समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर, बीएड, एलएलबी की उपाधियां हासिल कर इंदौर के प्रसिद्ध कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में विद्वत्तापूर्ण सेवाएं दीं। समय की मांग पर उन्होंने राजनीति में कदम रखा और विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 230 सैलाना जैसे उनके नाम का पर्याय बन गया।
सात बार बने विधायक
जनता ने उनके प्रति अभूतपूर्व विश्वास जताते हुए उन्हें 1967, 1972, 1980, 1985, 1998, 2003 और 2008 में सात बार विधायक चुना। दो बार वे मंत्री पद पर भी आसीन रहे।

मंत्री पद का त्याग
तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुक्ल ने उन्हें मंत्री पद और धोलावाड़ डेम में से एक चुनने का विकल्प दिया था। उस समय गेहलोत जी ने त्याग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मंत्री पद को ठुकरा दिया और जनता के भविष्य को ध्यान में रखते हुए धोलावाड़ डेम का चयन किया। यही डेम आज सरोज सरोवर के रूप में जाना जाता है, जिसने आदिवासी अंचल की तस्वीर बदल दी और हजारों परिवारों को रोज़गार व जीवन की नई राह दी।
विधायक रहते बस से सफर
उनकी सादगी की मिसाल यह थी कि वे रतलाम से सैलाना की बस यात्रा अक्सर खड़े होकर करते, जब तक कि कोई यात्री उन्हें अपनी सीट न दे देता। 1998 के निर्दलीय चुनाव में प्रचंड समर्थन से जीतकर आए  " उसी दौरान वे देश के श्रेष्ठ नागरिकों में भी चुने गए।
उनका मूल सिद्धांत 
वे कहा करते थे— “जिसका जो मूल कार्य है, उसका समूची क्षमता से निर्वहन ही सच्ची देशभक्ति है।”अपने ज्ञान, सादगी और जनसेवा से वे सभी दलों में समान रूप से लोकप्रिय और सम्मानित रहे। आज उनके पुत्र शेखर गेहलोत और हर्षविजय गेहलोत भी स्वर्गीय गेहलोत के हजारों अनुयायियों के साथ राजनीति में सक्रिय है।उनके निधन के बाद शोकसभा में पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठरी ने कहा था '' वो सबके थे ,सब उनके थे।  रतलाम जिले राजनीति का सबसे चमकता धूमकेतु चला गया। ''