मध्यप्रदेश स्थापना दिवस विशेष , रतलाम के जननायक की पूरी कहानी , मध्यभारत में रतलाम की क्या थी स्थिति जानिए , newsmpg स्पेशल स्टोरी में
मध्यप्रदेश अपना 69 वां स्थापना दिवस मना रहा है,इसका एक खास जिला रतलाम पहले मध्यप्रांत का हिस्सा रहा है। मध्यभारत सहित चार राज्यों को मिलकर 1956 में मध्य्प्रदेश का गठन हुआ। रतलाम क्षेत्र के पहले विधायक डॉ देवीसिंह एक स्वंत्रतता सेनानी थे।
रतलाम।एमपी गोस्वामी , मध्यप्रदेश अपना 69 वां स्थापना दिवस मना रहा है,इसका एक खास जिला रतलाम पहले मध्यभारत का हिस्सा रहा है। मध्यभारत सहित चार राज्यों को मिलकर 1956 में मध्य्प्रदेश का गठन हुआ।
मध्यभारत की राजधानी ग्वालियर थी, रतलाम जिले से उस समय भी पांच विधायक चुने जाते थे। 1951 में मध्यप्रांत की विधानसभा के चुनाव हुए। मध्यभारत की 99 सीटों के लिए चुनाव हुए इसमें कांग्रेस ने 75 , सोशलिस्ट पार्टी ने 4 , जनसंघ ने 4 , अखिल भारतीय रामराज्य परिषद ने 2 , हिन्दू महासभा ने 11 जीती थी। तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी सफलता प्राप्त की थी। रतलाम क्षेत्र के पहले विधायक डॉ देवीसिंह एक स्वंत्रतता सेनानी थे।
ये थे रतलाम जिले के पांच विधायक
उस समय कई सीट ऐसी थी जहां से दो विधायक चुने जाते , रतलाम क्षेत्र भी रतलाम तहसील और सिटी में विभाजित था ,
रतलाम तहसील से देवीसिंह सूरजमल , रतलाम सिटी से प्रेमसिंह , सैलाना से जीता भग्गा , आलोट से कुसुमकान्त जैन , जावरा से चौधरी फैजुल्ला बख्श , विधायक चुने गए थे।
आज़ादी के सिपाही डॉ. देवी सिंह राजपुरोहित
रतलाम के सपूत डॉ. देवी सिंह राजपुरोहित को अदम्य साहस, राष्ट्रसेवा और जनकल्याण के कार्यो के लिए याद किया जाता है।
15 दिसंबर 1907 को रतलाम जिले के सरवन गाँव में जन्मे डॉ. राजपुरोहित का जीवन संघर्ष, सेवा और समर्पण का प्रतीक रहा। राजस्थान के तालाखिया गाँव से जुड़ी उनकी पारिवारिक जड़ें उन्हें परंपरा और त्याग की प्रेरणा देती रहीं।
शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत प्रतिभा दिखाते हुए उन्होंने 18 वर्ष की आयु में पंजाब विश्वविद्यालय (दिल्ली) से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी मेधा को देखते हुए रतलाम रियासत ने उन्हें इंदौर मेडिकल स्कूल में चिकित्सा की पढ़ाई के लिए चुना, जहाँ से उन्होंने एल.एम.पी. (लाइसेंटिएट इन मेडिसिन एंड सर्जरी) की उपाधि प्राप्त की।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका
महत्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। स्कूल में निर्भय होकर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराया। इस साहसिक कदम पर उन्हें छात्रवृत्ति रद्द करने की धमकी और कई प्रकार की प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ा, परन्तु ब्रिटिश प्रशासन को अंततः उनके आगे झुकना पड़ा।स्वतंत्रता संघर्ष के साथ-साथ उन्होंने चिकित्सा को समाजसेवा का माध्यम बनाया। एक चिकित्सा संस्थान की स्थापना कर उन्होंने आमजन की सेवा की और गरीबों के डॉक्टर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
किसान आंदोलनों और सामाजिक चेतना का नेतृत्व
1938 में वे रतलाम प्रजा मंडल के अध्यक्ष चुने गए और किसान आंदोलन का नेतृत्त्व करते हुए ‘बेगार प्रथा’ के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध अनेक आंदोलनों का संचालन किया, जिससे किसानों को नए अधिकार और स्वाभिमान की अनुभूति हुई।
जेल यात्रा और गांधीजी का हस्तक्षेप
1940 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 13 मार्च 1940 को सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। गांधीजी के हस्तक्षेप और मुम्बई के प्रसिद्ध अधिवक्ता एम.एम. मुंशी के प्रयासों से उन्हें 13 जनवरी 1942 को रिहाई मिली।
स्वतंत्रता के बाद का योगदान
1947 में रतलाम की लोकप्रिय सरकार में उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा और श्रम मंत्री बनाया गया। उन्होंने हरिजनों के मंदिर प्रवेश जैसे ऐतिहासिक सामाजिक सुधारों को लागू कराया और हिंदू-मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करने के प्रयास किए।28 मई 1948 को वे मध्य प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने और अनुसूचित जाति कल्याण समिति के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी निभाई। वे 15 वर्षों तक रतलाम कांग्रेस के अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष और संविधान सभा के सदस्य रहे।
राजनीतिक जीवन का विस्तार
1952, 1957 और 1967 में वे मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र कैबिनेट में श्रम एवं आवास मंत्री तथा 1969 में श्यामचरण शुक्ल के सीएम कार्यकाल में स्वास्थ्य एवं जेल मंत्री के रूप में सेवाएँ दीं।
उन्होंने विभिन्न संगठनों में नेतृत्व किया भारत सेवक संघ के अध्यक्ष, रेलवे कर्मचारी संघ के अध्यक्ष, बालाचार संस्था के उपाध्यक्ष और भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष के रूप में सेवाए दी।