दिलचस्प और साहस से भरी है इंदौर के नए एसीपी की दास्तां, - भेष बदलकर पकड़ा बदमाशों को, कभी माओवादियों के गिरोह की तोड़ी कमर, जानिये कौन है ये अधिकारी
खरगौन से एसपीशिप का सफर शुरु करके रतलाम, जबलपुर में कई यादगार काम किए। रेडियो, इंटेलिजेंस, नारकोटिक्स विभागों में पुलिस महकमे के साथ पूरे प्रदेश में की महत्वपूर्ण कार्यवाहियां
इंदौर@newsmpg। कभी फिल्मी तरीके से भेष बदलकर नशे के सौदागरों के अड्डे पर जाकर उनके दिल में खौफ पैदा करने की बारी हो, या कानून व्यवस्था के बिगड़े हालातों में उत्तेजित भीड़ के बीच में जाकर उन्हें कानून सिखाने की मध्यप्रदेश के इस आईपीएस अधिकारी ने सब करके दिखाया। इंदौर के नए असिस्टेंट कमिशनर आफ पुलिस बनने वाले 2009 बैच के आईपीएस आफिसर अमित सिंह की न केवल कार्यशैली अलग है बल्कि अंदाज भी।
डीआईजी नारकोटिक्स के रूप में पुलिस मुख्यालय भोपाल में तैनात रहे हंसमुख स्वभाव के लिए मशहूर सिंह का तबादला अब इंदौर हो गया है। इसके पहले भोपाल में नारकोटिक्स विभाग में अपने कार्यकाल में उन्होंने नशे के खिलाफ प्रदेशभर में जो काम किए वो ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और महकमें में ही नहीं आम लोगों में भी चर्चित कहानियां बन गई हैं।
अपने सेवा काल में आईपीएस सिंह ने माओवादियों को आपूर्ति करने वाले एक हथियार रैकेट का भंडाफोड़ किया। डीआईजी-नारकोटिक्स के रूप में डी-कंपनी के एक गनर को भी गिरफ्तार किया है। आईपीएस अमित सिंह की कार्यशैली इसलिए भी अलग रही कि वे कभी भी किसी भी वक्त किसी भी तस्कर को पकड़ने के लिए अपना हुलिया और भेष बदलकर पहुंच जाते। एएसपी और फिर डीआईजी रेडियो और हेडक्वार्टर के रूप में भी उन्होंने हमेशा लीक से हटकर ही काम किए।
जहां रहे वहां किए ऐसे काम
इसके पहले जबलपुर में एसपी रहते हुए अमित सिंह अपनी अनोखी कार्यशैली में लगभग पूरे कार्यकाल में ही चर्चित रहे। उन्होंने जबलपुर में एक बार दवा की दुकान में एक नशे से ग्रस्त बच्चे को लेकर स्वयं भी दुकानदार के पास ग्राहक बनकर पहुंचे थे। रेड मारते हुए भारी मात्रा में नशीले इंजेक्शन जब्त किए थे और दुकान को भी सील करवाई थी। टीकमगढ़, रतलाम, खरगौन में उन्होंने ऐसी कई कार्यवाही की हैं। खासकर बच्चे अफीम, ब्राउन शुगर, चरस गांजे की लत में ना पड़े और युवा भी इस से दूर रहें, इसके लिए भी वे लगातार मुहिम चलाते रहे हैं।
खूफिया तंत्र है मजबूत
2009 बैच के आईपीएस अमित सिंह अपने महकमें में अपने खुफिया तंत्र को लेकर भी मशहूर हैं। खास बात यह है कि वे खरगौन में एसपी बने तभी से उनका खूफिया तंत्र बेहद मजबूत है। इसके बाद वे रतलाम पंहुचे तो एसपी के रूप में आते ही सांप्रदायिक तनाव का बड़ा मसला सामने आ गया। सिंह ने न केवल कम्युनिटी पुलिसिंग और खेलों के माध्यम से इस तनाव को लगभग खत्म ही करवा दिया बल्कि इससे मुखबिर औ प्रशासनिक तंत्र भी मजबूत करवाया। रतलाम में गरीबों की सुनवाई से लेकर पुलिसकर्मियों के खस्ताहाल मकानों की मरम्मत और लाइन के सौंदर्यीकरण के लिए उन्हें आज तक याद किया जा रहा है। यहां से जबलपुर में भी उन्होंने ऐसे ही कई काम किए।
शिक्षा, राजनीति, संप्रेषण सभी में उत्कृष्ट
सिंह का गृह नगर प्रतापगढ उप्र है जहां पैतृक मकान में रहते हुए प्रारंभिक अध्य्यन किया। शुरुआत से पढ़ाई के साथ खेल और को करिकुलर एक्टिविटी में आगे रहने से ख्यात ईलाहबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला हो गया। यहां आकर छात्र राजनीति से लेकर जूनियर रिसर्च फेलोशिप तक अपनी छाप छोड़ी। फेलोशिप के दौरान उन्होंने बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पढ़ाया भी और मध्यलानी इतिहास पर रिसर्च भी किया। यहीं से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी भी शुरु हुई जिसे 2009 में उन्होंने सफलता तक पंहुचाकर ही दम लिया।
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