रतलाम में है एक मात्र ऐसा दुर्लभ पेड़, जिसका वेदों में है उल्लेख, तंत्र से लेकर औषधी तक है बेशकीमती, दर्शन मात्र से मिलता है पुण्य

छूल,परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू नाम के साथ इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है।

रतलाम में है एक मात्र ऐसा दुर्लभ पेड़, जिसका वेदों में है उल्लेख, तंत्र से लेकर औषधी तक है बेशकीमती, दर्शन मात्र से मिलता है पुण्य
Rare Palash in Ratlam

रतलाम। @newsmpg 

फागुन के पहले केवल एक महीने के लिए रतलाम जिले में एक ऐसा पेड़ पर फूल खिलते हैं, जो वेदों में भी उल्लेखित है। आकर्षक फूलों वाला ये पेड़ औषधीय गुणों के लिए बहुमूल्य है और इसके दर्शन मात्र से पुण्य मिलता है। 

ये पेड़ है पलाश लेकिन सामान्य नहीं बल्कि पीला पलाश जो बाजना के समीप गांव में है। छूल,परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू नाम के साथ इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। पीले रंग के पलाश को देवी पीतांबरा का प्रिय पुष्प माना जाता है। पीले रंग का पलाश दुर्लभ किस्म का होता है, जो कभी-कभार ही खिलता है। रतलाम- बाजना  रोड़ पर राजापुरा माताजी से आगे घाट उतरने के बाद  पास सड़क किनारे पीले पलाश के फूल सभी को बहुत लुभा रहे हैं। पीले रंग का पलाश दुर्लभ प्रजातियों में से एक है। यह संरक्षित श्रेणी का पेड़ भी है। इस क्षेत्र में ज्यादातर लाल-केसरिया रंग के पलाश खिलते हैं। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प है। 

पीला पलाश अपने आप में है अनूठा 
औषधि,पूजा और तंत्र से लेकर खजाने तक में है इसका बड़ा महत्त्व है। आयुवेर्दाचार्य डॉ जितेन्द्र वर्मा के मुुताबिक पीले पलाश के फूल गंभीर  रोगों में इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोगो का यह भी कहना है कि इसका फूल खजाने में रखने से खजाना कभी खाली नहीं होता है। तंत्र साधना में भी इस फूल का इस्तेमाल होता है। साथ ही देवी देवताओं को भी अर्पित किया जाता है। वनस्पति शात्र विशेषज्ञ भी इसे अजूबा ही मानते हैं। बहरहाल चैत्र नवरात्रि में इस पेड़ के फूल को लेने दूर-दूर से लोग आते हैं। लेकिन इसका फूल कभी भी पेड़ से तोड़ना नहीं चाहिए। फूल तोड़ने पर पाबंदी है। ऐसे में लोग नीचे जमीन पर गिरे फूलों को चुनकर ले जाते हैं। कुछ भी हो लोगों के लिए ये पलास का फूल किसी अजूबे से कम नहीं है।

तंत्र और पूजन में भी होता है उपयोग 
सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजों में दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलों वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा" है जबकि लाल फूलो वाले को "ब्यूटिया सुपर्बा" कहा जाता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है। इसका उपयोग तांत्रिक गति-विधियों में भी बहुतायत से किया जाता है। 

देशभर में बहुत कम स्थानों पर है ये पेड़ 
जानकारों  मुताबिक, पूरे देश में पलास के पेड़ मिल जाएंगे और उसमें खिलने वाला लाल रंग का टेशू का फूल भी बड़े आराम से मिलेगा। ये फूल चैत्र मास में निकलते हैं। मगर जिले में बाजना रोड़ पर मझोड़िया गांव के पास सड़क के किनारे एक ऐसा पलास का पेड़ है जिसमें हर साल पीले रंग का टेशू फूल खिलता है। जिससे दूर-दूर से लोग यहां इस पेड़ को देखने आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार भेरूलाल टाक बताते है कि कई सालो से इस पेड़ को देखते आ रहे है। पीला पलाश इस जगह के अलावा अन्य जगह देखने में नहीं  आया है।

पत्तियों का होता है बहुत इस्तेमाल 
पलाश की पत्तियों का उपयोग वैवाहिक कार्यक्रमों मे मंडपाच्छादन के लिए और मेहमानों को भोजन कराने के लिए दोना पत्तल के रूप में बहुत प्रचलित था,यह गांव मे सस्ते इंधन का विकल्प है और जलाऊ लकड़ी के रूप में उपयोग होता है। पलाश के फूलों का रस तितली, मधुमक्खियों बंदरों के अलावा बच्चों को भी बहुत मधुर लगता है। इसके फूलों के गहने बच्चों को बहुत भाते हैं। छत्तीसगढ़ ये की लोकप्रिय गीत इन फूलों पर बनाते और फिल्माए गए हैं जैसे ,रस घोले ये माघ फगुनवा,मन डोले रे माघ फगुनवा,राजा बरोबर लगे मौरे आमा रानी सही परसा फुलवा ।