देश भर के शौकिनों की जुबां पर हैं रतलाम के इस ‘‘बालम ’’का नाम.... जानिये कहानी सैलाना से निकली रसीली ककड़ी की, जो देश में सिर्फ यहीं क्यों होती है पैदा
देश भर के शौकिनों की जुबां पर हैं रतलाम के इस ‘‘बालम ’’का नाम.... जानिये कहानी सैलाना से निकली रसीली ककड़ी की, जो देश में सिर्फ यहीं क्यों होती है पैदा
- रसीली बालम ककड़ी का स्वाद है बेजोड़
- सैलाना क्षेत्र के गांव वाली से पड़ा नाम
सड़को पर इन दिनों बालम ककड़िया बिकती खूब दिख रही हंै। ये ककड़ी साल भर नही मिलती, बस कुछ दिनों के लिए मिलती हैं। इन कुछ दिनों में ही ये ककड़ी देश भर में मेहमान नवाजी के लिए भी भेजी जाती हैं। सचिवालय के बड़े अफसरों से लगा कर मुख्यमंत्री, राजनेताओं से लेकर परिवार के लोग तक इसका लुफ्त लेते हंै।
तो चलिए आपको रतलाम के सैलाना क्षेत्र से निकलकर देश भर में पहचान बना चुकी बालम ककड़ी की पूरी कहानी जानते हैं। क्यों ये ककड़ी देश भर में स्वाद के शौकिनो की पहली पंसद है, और इसका नाम बालम ककड़ी कैसे पड़ा?
पहाड़ियों की तलहटी तक घुमावदार सफर
कहानी ककड़ी के बालम बनने की
ग्राम वाली के वयोवृद्ध किसान नानूराम बताते है कि बालम ककड़ी मूल रूप से वाली गांव की ही है। ये ककड़ी कितनी पीढ़ियों से गांव में लगाई जा रही है यह याद ही नहीं। आजÞादी के बाद से ही ग्राम की ये ककड़ी धीरे-धीरे देश भर में जाने लगी। इसके बाद इसका बीज भी आसपास के गांवो में फैलता गया। इस ककड़ी की उत्पत्ति वाली से होने के कारण पहले इसे वालन ककड़ी कहा जाता था। इसका नाम अपभ्रंश हुआ और वाली से वालन और फिर बालम ककड़ी हो गया।
पत्थर, मक्का-कपास की बेटी
गांव के ककड़ी उत्पादक किसान नाकू बा खराड़ी ने कपास, मक्का के बीच बालम ककड़ी की बेल दिखाते हुए बताया कि अमूमन ये पहाड़ी क्षेत्र की परंपरागत खेती है। इसके लिए पानी की आवश्यकता तय होती है। पहाड़ी और पथरीली जमीन ही उपयोगी है और यह अन्य फसलों पर चलती है। इस ककड़ी की मुख्य खेती अब भी वाली एवं इसके आसपास के गांव अलावा उंडेर, महापुरा, अमरगढ़, पुण्याखेड़ी, चावड़ा खेड़ी में होती है। हालांकि बीज लेकर देश के अन्य भागों में भी इसे पैदा करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिला। जिस प्रकार असली आगरा का पेठा आगरा में ही मिलता है, वैसे ही बालम ककड़ी का स्वाद वाली में है।
सैंकड़ो टन होता है उत्पादन, इस साल कम
गांव के रूपाजी खराड़ी बताते हैं कि एक अनुमानित आंकड़े सैलाना क्षेत्र के किसान पूरे सीजन में 500 टन ककड़ी बाहर सप्लाई कर रहे है। यानी जिले में इसकी औसत 700-800 टन बालम ककड़ी की पैदावार होती है। इससे किसानों को अच्छी कमाई भी हो रही है। इस बार सैलाना क्षेत्र में बाद की बारिश में खेंच की वजह से बालम ककड़ी के उत्पादन पर असर पड़ा है। गांव की किसान अनीता खराड़ी बताती हैं कि ककड़ी का बीज भी बड़ी मेहनत और जतन से सुखाकर संभालकर साल भर रखना पड़ता है।
केसरिया और हरी ककड़ी इसलिए हैं इतनी खास
प्रसिद्ध कवि ने लिखी बालम ककड़ी पर कविता