- कलमोड़ा के आश्रम में हुआ अंतिम संस्कार , यहीं बनेगी समाधि
रतलाम। दुनिया भर में भारत के रोलिंग संत के रूप में विख्यात रतलाम जिले के कलमोड़ा के मोहनदासजी लुढ़कन बाबा का देवलोक गमन शनिवार को हुआ । रविवार को कलमोड़ा फंटे के उनके आश्रम में हजारो लोगो की उपस्थिति में उनकी डोलयात्रा निकाली गई। इसके बाद देश भर से आए उनके शिष्यो की मौजूदगी मे वैदिक मंत्रोच्चार में दाह संस्कार हुआ। आश्रम में ही जहां उनका दाह संस्कार किया गया है। वहीं पर संत लुढ़कन बाबा की समाधि बनाई जाएगी।
संत लुढ़कन बाबा के भक्तो में शुमार राजेन्द्र पुरोहित ने बताया 71 वर्षीय लुड़कन बाबा वैष्ण्व संप्रदाय के प्रसिद्ध संत थे। उनकी रीड़ की हड्डी में दिक्कत होने के कारण 15 दिन पूर्व उन्हे इंदौर के एमवाय हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। बीते दिनों उनकी हालात लगातार गंभीर होती गई और उनके फेफड़ो में पानी भर गया था। शनिवार को लुड़कन बाबा ने शरीर त्याग दिया। इसके बाद उनको कलमोड़ा गांव में उनके आश्रम पर लाया गया। उनके देवालोक गमन की सूचना मिलते ही देशभर में फैले उनके भक्तो में शोक की लहर फैल गई। रविवार को हजारो भक्तो ने उनकी डोल यात्रा में शिरकत की।
लंदन में भी की थी यात्रा
संत मोहनदास उर्फ लुढ़कन बाबा करीब 50 हजार किमी की यात्राए लुढ़कते हुए कर चुके है। वे लंदन सहित विदेशो के कई शहरो में लुढ़क चुके है। इसके पहले रतलाम से वैष्णोदवी एवं अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की धार्मिक याात्राए भी लुढ़क कर कर चुके है। 40 साल तक देश भर में लुढ़कर यात्राओ के कारण इनको विश्व भर में इंडिया के रोलिंग संत कहा जाता था। लुढ़कन बाबा का नाम गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज था। बाबा ने कई हनुमान मंदिरो का भी निर्माण अलग -अलग जगह पर करवाया। लुढ़कन बाबा उम्रभर सनातन धर्म की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए काम करते रहे।
2004 में पाकिस्तान लुढ़क कर जाने की यात्रा रोकनी पड़ी
लुढ़कन बाबा ने वर्ष 2004 में विष्व शांति के उद्देश्य से रतलाम से पाकिस्तान स्थित प्र्रसिद्ध शक्ति पीठ हिंगलाज माता तक जाने के लिए यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा को कवर करने विश्व के कई देशो के मीडिया प्रतिनिधि भारत आए थे। वीजा सहित अन्य औपाचरिकता पूरी नही होने के कारण यात्रा को दिल्ली में कई दिनो तक रोकना पड़ा। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के प्रयासों के बावजूद यात्रा को पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं मिल पाई थी। तब लुढ़कन बाबा को इस यात्रा को वाघा बार्डर तक जाकर समाप्त करना पड़ा। इस यात्रा के अधूरी रहने का अफसोस बाबा को ताउम्र रहा।