रिजल्ट का पोस्टमार्टम chapter- 1 - रतलाम शहर में विधायक काश्यप की हैट्रिक और कांग्रेस के घटते ग्राफ पर पर्दे के पीछे की कहानी
- सिर्फ हार और जीत के आंकड़े नहीं, क्या रहे इसके पीछे के कारण..पीछे की मेहनत, कार्यकर्ताओं की लगन, वोट जुटाने की रणनीति, बागियों से समन्वय, भीतरघातियों से बचाव और ऐसे हथकंडे जो समीकरण में बैठे फिट। हारने वालों की कमी, लापरवाही के साथ पिछले चुनावों की स्टडी के साथ पढ़िये समीक्षा और दीजिए अपनी राय।
मतदान प्रतिशत के साथ बढ़ती गई काश्यप की जीत
संख्या में मत बढ़े, लेकिन कांग्रेस का वोट शेयर हुआ कम
भाजपा की जीत के लिए बने आधार -
1. भाजपा ने बुजुर्गों, दिव्यांगजनों से लेकर पोस्टल बैलेट के मतों तक पर नजर बनाने के साथ मेहनत की। वार्ड और गली-मोहल्लों में 10-12 घरों की जिम्मेदारी एक-एक कार्यकर्ता को दी गई। इसकी मॉनीटरिंग भी तीन स्तर पर की गई।
2. बूथवार मैनेजमेंट अच्छा रहा और अपनी बातें जनता के सामने रखने के साथ ही चुनाव के 6 महीने पहले से जनता की समस्या नोट करके उसे हल करने पर जोर दिया गया।
3. चुनाव के दौरान संगठन एकजुट दिखा और खास तौर पर दो तरह क्षेत्रों की सूची बनाकर मेहनत की गई। एक जहां से भाजपा के कम वोट मिलते हैं, वहां वोट बढ़ाने पर फोकस हुआ और जहां भाजपा को ज्यादा वोट मिलते हैं, वहां ज्यादा मतदान करवाने पर फोकस किया गया।
4. कार्यकर्ताओं की कार्यप्रणाली के आधार पर जिम्मेदारी सौंपी गई और जिन क्षेत्रों में पार्टी को लेकर कोई भी नाराजगी थी, वहां जाकर बात करके मनाया गया।
5. महिलाओं पर पार्टी ने बहुत फोकस किया और महिला कार्यकर्ताओं को प्रेरित करके फील्ड पर उतारा गया।
6.काश्यप ने अपने कार्यों की व्यापक जानकारी देने का साथ फीडबैक तंत्र भी मजबूत रखा। इससे समय पर शिकायत और कमियों को दूर करने में पार्टी को बड़ी मदद मिली।
कांग्रेस लगातार कमजोर -
1. कई चुनावों से पार्टी में गुटबाजी और खेमेबाजी को कम करने और भीतरघात से बचने में बिल्कुल कामयाब नहीं रही।
2. संगठनात्मक ढ़ांचा, वार्ड वार ठोस जिम्मेदारियों का बंटवारा या निर्वहन और बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं में पार्टी बेहद पीछे है।
3. ठोस रणनीति का अभाव, नेताओं में व्यक्तिगत खींचतान का मंच, सभाओं और प्रचार में खुलकर दिखना।
4. ऐसे नेताओं को मिले पद और जिम्मेदारी जिन्हें न तो काम का अनुभव है, न ही अपनी ही पार्टी में स्वीकार्यता।
5. फील्ड पर कार्यकर्ताओं और विश्लेषात्मक जानकारियों की बेहद कमी।
6. जनता तक अपनी बात पंहुचाने, जनता की नाराजगी या मुद्दे जानने में पार्टी निर्दलीय प्रत्याशियों से भी पीछे है।
ये थी चुनौती -
1. भाजपा से चैतन्य काश्यप पहली बार मैदान में उतरे थे। उनकी कार्यप्रणाली, विकास के विजन और शैली को लेकर जनता में असमन्जस था।
2. पार्टी में एकजुटता की भी कमी रही। नोटा समेत 16 प्रत्याशी मैदान में होने से वोट कटे।
1. विरोधी दलों ने चुनाव में नगर निगम से नाराजगी और जनप्रतिनिधियों की खींचतान को भुनाने की कोशिश की।
2. धर्म और जातिगत समीकरणों को विरोधियों द्वारा भुनाया गया तथा मुख्यमंत्री की आरक्षण पर की गई टिप्पणी से एक वर्ग नाराज रहा।
3. पार्टी में अंतरकलह और ध्रुवीकरण का असर दिखा।
1. दो कार्यकाल के बाद एंटी इनकम्बैंसी और आंतरिक नाराजगी को भड़काने का प्रयास हुआ।
2. प्रदेश और केंद्र की योजनाओं और नीतियों के कारण परेशानियों, कोरोना के कारण धीमी पड़ी कार्यों की रफ्तार को भी मुद्दा बनाने की कोशिश हुई।
कांग्रेस
1. पार्टी में गुटबाजी के कारण न एकजुटता रही न ही ठोस रणनीति या प्लान आॅफ एक्शन।
2. अनुभवी नेताओं और बड़े स्टार प्रचारकों की कमी दिखाई दी जिससे जनता को अधिक प्रभावित करने का अवसर पार्टी को नहीं मिला।
3. बूथ स्तर पर पार्टी बेहद कमजोर रही। नोटा समेत 16 प्रत्याशी मैदान में होने से वोट कटे।
1. गुटबाजी, खेमेबाजी के कारण खुलकर बड़े नेता प्रचार से दूर रहे, कई नेता विरोधी दलों के साथ तक दिखे।
2. मैनेजमेंट की बेहद कमी रही, कार्यकर्ता एक ही क्षेत्र पर फोकस दिखे, जबकि अन्य इलाकों में पार्टी नहीं पंहुची।
3. बूथ स्तर पर पार्टी बेहद कमजोर रही। कई क्षेत्रों में मॉनीटरिंग के अभाव में भीतरघात हुआ और सेंध लगी।
विधानसभा 2023-
1. प्रत्याशी के चेहरे को लेकर खास उत्साह और ठोस विश्वास बनाने में पार्टी कामयाब नहीं हुई।
2. गुटबाजी खुलकर कम दिखी, लेकिन अंदरूनी तौर पर दो बड़े नेताओं की व्यक्तिगत टीम के अलावा कार्यकर्ता क्षेत्र में काम करते नहीं दिखे।
3. मंच पर नेता अधिक और शहर में कार्यकर्ता कम रहे। घरों तक प्रचार के लिए पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता आधे शहर में भी नहीं पंहुचा।
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