रिजल्ट का पोस्टमार्टम-  जो जीता वो कैसे बना सिकंदर, हारने वालों ने कहां की गलती  - हर विधानसभा की डीटेल समीक्षा, सिर्फ न्यूजएमपीजी पर -

- सिर्फ हार और जीत के आंकड़े नहीं, इसके पीछे के कारण जानने के लिए बहुत जानना अहम है। पीछे की मेहनत, कार्यकर्ताओं की लगन, वोट जुटाने की रणनीति, बागियों से समन्वय, भीतरघातियों से बचाव और ऐसे हथकंडे जो समीकरण में बैठे फिट। हारने वालों की कमी, लापरवाही के साथ पिछले चुनावों की स्टडी के साथ पढ़िये समीक्षा और दीजिए अपनी राय। 

रिजल्ट का पोस्टमार्टम-  जो जीता वो कैसे बना सिकंदर, हारने वालों ने कहां की गलती  - हर विधानसभा की डीटेल समीक्षा, सिर्फ न्यूजएमपीजी पर -
Analysis of Election Results

Research-Desk@newsmpg हर मुकाबले में किसी की हार और किसी जीत होना तय है, लेकिन उतना ही जरूरी है इसके कारणों का विश्लेषण। प्रदेश ही नहीं बल्कि पांच में से तीन राज्यों में आए परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति वो ऊंट है जो तमाम संभावनाओं के बाद भी करवट ले सकता है। जिले में आए परिणामों से भाजपा अत्याधिक खुश है, लेकिन कांग्रेस ही नहीं बल्कि विजेता भी यह जानने में लग गए हैं कि वो कौन से आधार रहे जिनके बल पर यह परिणाम आए हैं।

ऐसे में अपने पाठकों को भी आगे रखने के लिए जिले की हर विधानसभा की हार और जीत पर सटीक और विस्तृत विश्लेषण आप आने वाली श्रृंखला में पढ़ेंगे। इसमें शामिल होगी उस विधानसभा के मतदाताओं से चर्चा, वहां के राजनैतिक विश्लेषकों का आंकलन, परीस्थितियों पर समाज के गणमान्य लोगों की राय। न्यूजएमपीजी के साथ जानिये आपकी विधानसभा चुनाव परिणामों पर एक्सक्लूसिव, बेबाक और सटीक विश्लेषण सिर्फ हमारे साथ। 

व्यक्तिवाद बनाम संगठन 

प्रदेश की तरह जिले में एक बात पांचों सीटों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिली वह था भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच संगठन और व्यक्तिवाद। भाजपा हर बार की तरह व्यक्ति से बढ़कर विचार और संगठन के लिए एकजुट नजर आई। वहीं कांग्रेस में जय-जय कमलनाथ, जय जय प्रत्याशी के नारों से ऊपर नहीं उठी।  एक और बड़ा कारण इस बार चुनावों में रहीं महिलाएं। भाजपा ने जहां आधी आबादी पर पूरा ध्यान दिया तो वहीं कांग्रेस और निर्दलीयों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। लाड़ली बहनों और बेटियों की मनुहार में कमी अन्य दलों को भारी पड़ी। 

लगन, लापरवाही और लेटलतीफी...

सीटवार बात करें तो आलोट में भाजपा ने अपने बागी को तत्काल मनाने के साथ ही डैमेज कंट्रोल पर जबरदस्त मेहनत की। जावरा, रतलाम ग्रामीण में भी भाजपा ने निर्दलीय प्रत्याशियों द्वारा काटे जा रहे अपने वोटों पर काम किया। एकमात्र सैलाना ऐसी सीट रही जहां इतने प्रयासों के बाद भी कमजोर कैंडीडेट और उनके समर्थकों का विरोध भाजपा को भारी पड़ा। वहीं बात करें कांग्रेस की तो पांचों ही सीटों पर एक बात खुलकर सामने आई है वो रही गुटबाजी, भीतरघात, सेंधमारी रोकने में असमर्थता और संगठन के प्रति आधे कार्यकर्ताओं में शून्य समर्पण। 

हर विधानसभा डीटेल एनॉलिसिस 

अगली श्रृंखला में रतलाम शहर विधानसभा की विस्तृत समीक्षा का इंतजार करें। हर सीट की अपनी रोचक कहानी है जो 2013 के विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक बदलती-बिगड़ती रही है। 

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