शिवोहम...मैं ही शिव हूं, .मैं बृह्म हूं, मैं आत्म हूं.....

शिवोहम...मैं ही शिव हूं, .मैं बृह्म हूं, मैं आत्म हूं..... आलेख 

Mar 1, 2022 - 17:35
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शिवोहम...मैं ही शिव हूं, .मैं बृह्म हूं, मैं आत्म हूं.....


 आलेख 

आद्य गुरु भगवान शकराचार्य द्वारा दिया गया महामंत्रा व वेद के चार महावाक्यों में से एक महावाक्य है 'शिवोहम शिवोहम शिवोहम'।  अर्थार्त ' मैं ही शिव हूं, मैं ही शिव हूं मैं ही शिव हूं। मैं जीव ही बृह्म हूं। मैं जीव ही आत्म हूं। मैं जीव ही शिव हूं। ''

शिव बना है शव + शक्ति से मिलकर इसीलिए यह कहा जाता है शिवशक्ति।  तत्व + चेतना या ऊर्जा । तत्व मतलब जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी। इसके अलावा 5 कर्मेन्द्री,  5 ज्ञानेंद्रि, 5 मुख्य प्राण, 5 उपप्राण है। इसके अलावा चित्त ,बुद्धि ,अहंकार, मन  कुलमिलाकर 29 मुख्य तत्व है । पर यह इतने ही नही है इसके अलावा भी ओर है उपतत्व भी होते है। जो इनका ज्ञाता होता है उसे तत्वज्ञानी कहते है। इन तत्वों को जो ऊर्जा देता है, इन तत्वों को जो चलाता है, इन तत्वों का जो साक्षी है वह है  आत्मतत्व। उसे ही परमतत्व भी कहते है। इन दोनों का समावेश ही शिवतत्व या शिवत्व कहलाता है। 

शिव अपने आपमे में कुछ नहीं। शिव भी एक प्रकार की ऊर्जा है एक शक्ति है । अब यहाँ एक बात और संमझने योग्य है वह है शिव को हम संहार का देव मानते है तो ऐसा क्यो ? यह समझने का प्रयास करते है। तीन देव हैं जिन्हें हम त्रिदेव कहते है।  तीन शक्ति मतलब तीन प्रकार की ऊर्जा तीनो का अलग अलग कार्य है। बृह्मा जो सृजन करते है। विष्णु जो पालन करते है। महेश जो संहार करते है।

अब इन तीनो में बड़ा कौन यह बताना मूर्खता होगी। क्योंकि तीनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बगैर एक अधूरे हैं। इसलिए आपने देखा होगा कि बृह्मा जी, विष्णु जी व शिव जी को अपने से बड़ा या अपना आराध्य मानते हैं। यह प्रक्रिया सम्पूर्ण बृह्मांड में निरंतर चल रही है। तीन गुणों से बनी शृष्टि इन्ही तीनो के द्वारा संचालित हो रही है।  

संसार निरंतर बन रहा है ,पल रहा है और समाप्त भी हो रहा है।   यह सदियों से चल रहा है सदियों तक चलेगा। इसलिए इसका कोई अंत नही, यह अनन्त है। इसीलिये कहा जाता है 'हरि अनंत हरि कथा अनन्ता'। 

मैं ही शिव हूं और मैं प्रत्येक जीव मैं हूं। तो मैं ही सभी जीवों की पूजा, अर्चना आराधना,साधना,भजना, कीर्तन ,ध्यान  करता हूं। जब शिवत्व जगता है तो जीव सेवा प्रारंभ हो जाती है। करुणा जग जाती है। हिंसा खत्म हो जाती है। प्रताड़ना समाप्त हो जाती है। क्योकि जब सबमे  मैं स्वंय को ही देखा जाता है तो कोई भला स्वंय को किसी भी प्रकार कष्ट क्यों पहुँचावेगा।
                                        शिवोहम शिवोहम शिवोहम 
                                                                                                         गोस्वामी विकास गिरि
                                                                                                         योगाचार्य एवं आध्यात्मिक चिंतक
                                                                             ग्रामीण मण्डल युवा अध्यक्ष दशनाम गोस्वामी समाज देवास मध्यप्रदेश

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