रक्षाबंधन पर आदिवासी संस्कृति का रंग: सड़कों पर बिखेरी संस्कृति की छटा

राखी और रैली की दोहरी रौनक, पुलिस व्यवस्था रही सक्रिय, 50 से अधिक स्वागत द्वारों पर गूंजे पारंपरिक गीत

Aug 9, 2025 - 13:45
Aug 9, 2025 - 13:47
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रक्षाबंधन पर आदिवासी संस्कृति का रंग: सड़कों पर बिखेरी संस्कृति की छटा
रतलाम में मनाया विश्व आदिवासी दिवस

रतलाम।  9 अगस्त शनिवार का दिन रतलाम के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक और पारंपरिक उत्सवों से भरा हुआ रहा। एक ओर जहां बहनों ने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर स्नेह और सुरक्षा का व्रत निभाया, वहीं दूसरी ओर विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी समाज की भव्य महारैली ने शहर को पारंपरिक रंगों और लोक संस्कृति के स्वर से सराबोर कर दिया।

सुबह से शाम तक शहर की सड़कों पर बिखरी संस्कृति, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप, तीर-कमान लिए युवक-युवतियों की थिरकती टोली और पर्यावरण तथा सामाजिक संदेशों से सजी तख्तियों ने एक चलायमान सांस्कृतिक दृश्य उपस्थित किया। इस दौरान पुलिस बल भी मुस्तैद रहा और ट्रैफिक समेत सभी व्यवस्थाओं का सुचारु संचालन हो रहा है। 

रैली का शुभारंभ बाजना बस स्टैंड स्थित बिरसा मुंडा की प्रतिमा को नमन कर हुआ। रैली लोहार रोड, नाहरपुरा, सिविल अस्पताल, कॉलेज रोड, नगर निगम, छत्रीपुल पर समाप्त होगी। 

कहीं मांदल की थाप, कहीं थाली की टंकार

रैली में धोती, बंडी, साफा पहने युवक और घाघरा, लुगड़ी, काचली में सजी महिलाएं पारंपरिक गीतों की धुन पर झूमती रहीं। हाथों में तीर-कमान और सिर पर तिरंगा लिए हजारों लोग जब थिरकते हुए आगे बढ़े तो राह चलते लोग भी उस उल्लास में शामिल हो उठे। पहली बार इतने बड़े स्तर पर रैली में राष्ट्रीय ध्वज के साथ-साथ समाज के प्रतीक ध्वज भी लहराते नजर आए। 

विरासत का उत्सव, चेतना का उद्घोष

रैली में केवल संस्कृति नहीं बिखरी, बल्कि सामाजिक संदेशों की बहार भी रही। "बेटी बचाओ, बच्चों को पढ़ाओ, जंगल बचाओ, डीजे हटाओ, बाल विवाह हटाओ" जैसे नारों से जन-जागृति की लहर दौड़ती रही। कई स्थानों पर पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता की रक्षा और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने संबंधी अपीलें की गईं। खास बात रही कि इस बार डीजे का उपयोग न के बराबर रहा। 

50 से अधिक स्थानों पर स्वागत 

पूरे मार्ग में अधिक 50 स्थलों पर विभिन्न समाजों, संगठनों और रहवासियों ने स्वागत मंच सजाए। जलपान, पुष्पवर्षा, और पारंपरिक गीतों से रैली का स्वागत किया गया। यह दृश्य समाजिक समरसता और भाईचारे की मिसाल बन गया।

धरोहर से दिशा की ओर

कार्यक्रम के संरक्षक वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अभय ओहरी ने कहा, "यह आयोजन परंपरा का उत्सव भर नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक भविष्य की दिशा तय करने वाला आंदोलन है। अब समय है कि हम संस्कृति के साथ चेतना को भी आगे बढ़ाएं।"

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