पीठ पर बहन को लादे पहाड़ी पर चलती ये कर्तव्य पराणयता की मिसाल है -जानिये क्यों बारोड़ा के इस भाई ने लिया ये फैसला

अपने माता-पिता, पत्नी, बच्चों के सपनें पूरे करने वाले कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, लेकिन जिले के गांव बारोड़ा में एक भाई ने रिश्तों की मिठास और कर्तव्य परायणता को पुन: प्रदर्शित कर दिया है।

पीठ पर बहन को लादे पहाड़ी पर चलती ये कर्तव्य पराणयता की मिसाल है -जानिये क्यों बारोड़ा के इस भाई ने लिया ये फैसला
भाई का अनूठा समर्पण

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रतलाम। अपने माता-पिता, पत्नी, बच्चों के सपनें पूरे करने वाले कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, लेकिन जिले के गांव बारोड़ा में एक भाई ने रिश्तों की मिठास और कर्तव्य परायणता को पुन: प्रदर्शित कर दिया है। एक शिक्षक के रूप में काम करने वाले इस भाई ने अपनी बड़ी दिव्यांग बहन को न केवल तीर्थ दर्शन करवाएं हैं, बल्कि ये साबित भी कर दिया है कि जहां प्यार और करने का भाव हो, वहां मुश्किलें टिक नहीं सकतीं। 
ये कहानी नामली के समीप ग्राम नौगावांकला में पदस्थ सहायक शिक्षक पन्नालाल प्रजापत की है। लोग भाई- बहन में प्रेम और परिवार के सभी सदस्यों में एकता और धर्म की भावना की प्रशंसा कर रहे हैं। उनकी बड़ी बहन 58 वर्षीय मनु बाई पिता बालाराम प्रजापत जन्म से विकलांग हैं और उन्होंने कभी विवाह नहीं किया। वे भाई और परिवार के साथ ही खुशी से रहती हैं। परिवार में बच्चों से लेकर भाभी प्रेम के बावजूद बचपन से मनुबाई के जीवन में एक कसक रही। वे बच्चों की तरह कई ऐसे खेल नहीं खेल पाईं जो आम बच्चे खेलते हैं। उनके कई सपनें दिव्यांगता के कारण साकार नहीं हो सके। लेकिन उनके छोटे भाई ने हमेशा उनका हौसलां बढ़ाया और कोशिश की उनके सपनें पूरे हो सकें। परिवार ने कभी मनुबाई को कमजोर नहीं होने दिया। बहन ने हाल ही में जब परिवार के साथ कश्मीर में पहाड़ों पर मां वैष्णोदेवी, उत्तराखंड में ऋषिकेश और अन्य धामों के दर्शनों की इच्छा जताई तो कुछ गांव वालों को लगा कि ये संभव नहीं। लेकिन भाई ने इसे पूरी करने का बीड़ा उठा लिया। 

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ट्रेन, व्हीलचेयर कभी पीठ पर सवारी 

परिवार सबसे पहले रतलाम से ट्रेन में वैष्णो देवी दर्शनों के लिए कटरा पंहुचा। बहन संकुचा रही थी, लेकिन भाई ने पहले घोड़े पर बैठाकर और फिर खुद ही पहाड़ पर व्हीलचेयर खींचकर उन्हें माता के दर्शन करवाए। लौटने में जब व्हीलचेयर नहीं चल पाई तो उन्हें पीठ पर बैठाकर लाए। यहां से वे हरिद्वार पंहुचे और दर्शन और गंगा स्नान भी कभी पीठपर तो कभी व्हील चेयर पर हुए। अंत में ऋषिकेश की कठिन यात्रा और दर्शन भी आखिरकार भाई- बहन ने पूरे किए। जब वे दर्शन पूरे करके रतलाम लौटे तो परिवार के साथ गांव वालों ने भी उनका भव्य स्वागत किया। बहन- भाई के इस समर्पण और प्रेम की मिसाल दी जा रही है।